लोकतंत्र के नाम पर....

लोकतंत्र के नाम पर....

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय 

अमेरिका को दुनिया में लोकतंत्र लाने का बड़ा शौक है तो वह जिनसे उसकी दुश्मनी होती है वहीं लोकतंत्र लाने का प्रयास क्यों करता है ?

उसके लिए रेड कार्पेट बिछाने वाले सऊदी अरब और उसके स्वागत में अपने घर की महिलाओं का बाल लहराते नृत्य करके स्वागत करने वाले UAE और ₹400 करोड़ डालर का हवाई जहाज गिफ्ट करने वाले क़तर में कौन सा लोकतंत्र है? यूं कहें तो सारे गल्फ़ देशों में ही कौन सा लोकतंत्र है।

मगर लोकतंत्र के नाम पर ईराक को बर्बाद करने के बाद अब लोकतंत्र के नाम पर ईरान के पीछे पड़ा है।

दरअसल अमेरिका के पास किसी देश पर आक्रमण करने के लिए 3 घिसे पिटे पुराने सेट नरेटिव हैं। 1- लोकतंत्र 2- आतंकवाद 3- इस्लामिक आतंकवाद 

यह तीनों मुद्दे अमेरिका द्वारा ही गढ़े गए, आतंकवाद को धर्म से जोड़ने के लिए अपने स्टूडियो में गला काटते फिल्म शूट कराए गए और इसे अपने संचार माध्यमों के सहारे पूरी दुनिया में फैलाया , अपने पाले 2-3 अरबी गुर्गों को डरावना बनाया और आतंकवाद को धर्म से जोड़ कर "इस्लामिक आतंकवाद" का नरेटिव घोषित कर दिया गया। केवल इसलिए कि एक धर्म बदनाम हो और इसके सहारे इस धर्म के लोगों द्वारा शासित देशों पर आक्रमण करके उनके तेल संपदा पर कब्ज़ा किया जाए।

आतंकवाद की इसी‌ थियरी "इस्लामिक आतंकवाद" को भारत में एक राजनीतिक विचारधारा ने अपना लिया और अपने बहुसंख्यक समुदाय को डराया , और उन्हें यह विश्वास दिलाया कि इनसे एक फलां व्यक्ति ही आपको बचा सकता है।

हालांकि इस देश में सोकाल्ड "इस्लामिक आतंकवाद" का ऐसा कोई दौर नहीं रहा जैसा कि हिंदू तमिल के लिट्टे का दौर रहा जिसने राजीव गांधी की हत्या कर दी या सिख धर्म के खालिस्तानी आतंकवाद का दौर रहा जिसने पदासीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी।

मगर लिट्टे के आतंकवाद को कभी "हिंदू आतंकवाद" नहीं कहा गया ना खालिस्तानी आतंकवाद को कभी "सिख आतंकवाद" कहा गया।

ना अमेरिका ने कहा ना भारत ने ना सारी दुनिया ने, यही कारण है कि किसी मुसलमान द्वारा किया कोई भी अपराध इस्लामिक आतंकवाद/जेहाद हो जाता है और यही कोई और करे तो यह सामान्य अपराधिक घटना।

कहने का अर्थ यह है कि सत्ता और स्वार्थ के लिए यह खेल खेले जाते हैं और इसमें पिसता आम इंसान है फिर चाहे वह कहीं का हो...

और मुसलमान इसमें सबसे अधिक पिसा है , पिस रहा है..बिलावजह....