राजीव कुमार झा की कविता -- गांव के गांव रहे द

राजीव कुमार झा की कविता --  गांव के गांव रहे द

कविता 

गांव के गांव रहे द

- राजीव कुमार झा ✍️

हमर गांव के

गांव रहे द

कहीं गोइंठा जरे द

कहीं पुआर बिछे द……

हमरा मत समझावs

विकास के परिभाषा

हमरा नइखे तोहरा से

कवनो आशा …..

तू रखिहs अपना घर के

चिकन फर्श

एने गोबर के

ठांव रहे द……

तोहर लोहा के

बनल मशीन देखनी

पानी के प्लांट देखनी

डेयरी फार्म देखनी …..

तू रहs बीस मंजिला

इमारत में

एने पीपल के

छांव रहे द……

हमरा गांव के

गांव रहे द…..

तोहर बालकनी में

टंगाइल झुलुआ देखनी

प्लास्टिक से बनल फूल देखनी

चीनी माटी के बनल धतूर देखनी….

ओने बाजे द

डीजे के धुन

एने करियकी कोइली

के तान रहे द…..

हमरा गांव के

गांव रहे द……

रचनाकार – राजीव कुमार झा

सोरपनिया,ढाका,पूर्वी चंपारण,बिहार