आज विश्व जनसंख्या दिवस है...

प्रेम शंकर पाण्डेय
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वर्ष 1804 में दुनिया की आबादी थी एक अरब, जो उसके 123 वर्ष बाद 1927 में दो अरब हुई। जहाँ एक अरब की जनसंख्या बढ़ने में 123 वर्ष लगे वहीं अगली एक अरब की संख्या 1960 तक मात्र 33 वर्षों में पहुँच गई। इसे चार अरब का आँकड़ा छूने में 1974 तक सिर्फ चौदह साल लगे। 1987 में जब इस आँकड़े ने पाँच अरब की संख्या को छुआ तो दुनियाभर को चिंता हुई और 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया।
इसका प्रभाव यह हुआ कि 1999 में छह अरब की संख्या तक पहुँचने में बारह साल का वक्त लगा। यही सात अरब की संख्या तक जाने में 2011 तक फिर बारह साल लगे।
वर्ष 2019 से सारी दुनिया की प्रजनन दर 2दशमलव 4 है।
दुनियाभर में ऐसे लगभग बीस देश हैं जिनकी जनसंख्या पिछले वर्षों की अपेक्षा कम हो रही है। इनमें जापान, यूक्रेन, वुल्गारिया, क्रोएशिया जैसे देश आगे हैं।
1951 में जहाँ भारत की जनसंख्या 36 करोड़ थी वहीं 2011 तक आते आते यह 120 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी थी। जिस अनुपात में लोग बढ़ रहे हैं संसाधन नहीं। हालाँकि अभी उस तेजी से नहीं बढ़ रही है जिस गति से पहले बढ़ रही थी। फिर भी इस पर लगाम लगाने जाने की जरूरत है।
काका हाथरसी ने यही सब देखकर कभी कहा था-
देश को निर्धन बनाते जा रहे है,
भुखमरी को पास लाते जा रहे है,
वे मदद पहुँचा रहे हमलावरों को,
जो कि जनसंख्या बढ़ाते जा रहे हैं,
और हमने लिखा है कि-
नई पीढ़ियों को हम
अपनेपन से परिचित करवाएं,
देश बढे़ या पीछे होगा
किन बातों से, समझाएं,
बदलेंगे तस्वीरों के रुख,
क्षमता इनके पास है,
वर्तमान में यही देश का,
बनता हुआ इतिहास हैं।
साभार
रजनीकांत शुक्ला ✍️