*कजली (कजरी,सातुड़ी) तृतीया (तीज) विशेष..*

*कजली (कजरी,सातुड़ी) तृतीया (तीज) विशेष..*
रिपोर्ट_शीतला दुबे✍️
भाद्र कृष्ण तृतीया तिथि को देश के कई भागों में कज्जली तीज का व्रत किया जाता है। इस वर्ष कज्जली तीज 6 अगस्त गुरुवार को है। अन्य तीज त्यौहारो की तरह इस तीज का भी अलग महत्त्व है. तीज एक ऐसा त्यौहार है जो शादीशुदा लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. हमारे देश में शादी का बंधन सबसे अटूट माना जाता है. पति पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए तीज का व्रत रखा जाता है. दूसरी तीज की तरह यह भी हर सुहागन के लिए महत्वपूर्ण है. इस दिन भी पत्नी अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती है, व कुआरी लड़की अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत रखती है।
भविष्य पुराण में तृतीया तिथि की देवी माता पार्वती को बताया गया है। पुराण के तृतीया कल्प में बताया गया है कि यह व्रत महिलाओं को सौभाग्य, संतान एवं गृहस्थ जीवन का सुख प्रदान करने वाला है। इस व्रत को देवराज इंद्र की पत्नी शचि ने भी किया था जिससे उन्हें संतान सुख मिला। युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को देवी पार्वती की पूजा सप्तधान्य से उनकी मूर्ति बनाकर करनी चाहिए। इस दिन देवी की पूजा दुर्गा रूप में होती है जो महिलाओं को सौंदर्य एवं पुरुषों को धन और बल प्रदान करने वाला है। देवी पार्वती को इस दिन गुड़ और आटे से मालपुआ बनाकर भोग लगाना चाहिए। इस व्रत में देवी पार्वती को शहद अर्पित करने का भी विधान है।
व्रत करने वाले को रात्रि में देवी पार्वती की तस्वीर अथवा मूर्ति के सामने की शयन करना चाहिए। अगले दिन अपनी इच्छा और क्षमता के अनुसार ब्राह्मण को दान दक्षिणा देना चाहिए। इस तरह कज्जली तीज करने से सदावर्त एवं बाजपेयी यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। इस पुण्य से वर्षों तक स्वर्ग में आनंद पूर्वक रहने का अवसर प्राप्त होता है। अगले जन्म में व्रत से प्रभाव से संपन्न परिवार में जन्म मिलता है और जीवनसाथी का वियोग नहीं मिलता है।
कज्जली तीज व्रत मुहूर्त 2019
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तृतीया तिथि का आरंभ 17 अगस्त को रात 10 बजकर 48 मिनट पर हो रहा है। 18 अगस्त को सूर्यादय से ही तृतीया तिथि होगी जो रात में 1 बजकर 13 मिनट तक रहेगी। दिन में 12 बजकर 2 मिनट से भद्रा लग रही है इसलिए व्रत करने वाले को सुबह 7 बजे से लेकर 12 बजे के पूर्व देवी पार्वती के संग भगवान शिव की पूजा कर लेनी चाहिए।
कजली तीज नाम क्यों पड़ा?
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पुराणों के अनुसार मध्य भारत में कजली नाम का एक वन था. इस जगह का राजा दादुरै था. इस जगह में रहने वाले लोग अपने स्थान कजली के नाम पर गीत गाते थे जिससे उनकी इस जगह का नाम चारों और फैले और सब इसे जाने. कुछ समय बाद राजा की म्रत्यु हो गई और उनकी रानी नागमती सती हो गई. जिससे वहां के लोग बहुत दुखी हुए और इसके बाद से कजली के गाने पति – पत्नी के जनम – जनम के साथ के लिए गाये जाने लगे।
इसके अलावा एक और कथा इस तीज से जुडी है. माता पार्वती शिव से शादी करना चाहती थी लेकिन शिव ने उनके सामने शर्त रख दी व बोला की अपनी भक्ति और प्यार को सिद्ध कर के दिखाओ. तब पार्वती ने 108 साल तक कठिन तपस्या की और शिव को प्रसन्न किया. शिव ने पार्वती से खुश होकर इसी तीज को उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा था. इसलिए इसे कजरी तीज कहते है. कहते है बड़ी तीज को सभी देवी देवता शिव पार्वती की पूजा करते है.
कजली तीज को निम्न तरह से मनाया जाता है।
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