माहे रमजान : स्वास्थ्य की दृष्टि से रोजा का महत्व

माहे रमजान : स्वास्थ्य की दृष्टि से रोजा का महत्व

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय ✍️

आत्मशुद्धि आत्मनियंत्रण व अल्लाह के प्रति आस्था को बढ़ावा देता रोजा - नजमुस्साकिब अब्बासी नदवी

इस्लाम के पांच महत्वपूर्ण स्तंभों में रोज़ा (उपवास) का बड़ा महत्त्व है। यह एक प्रमुख धार्मिक कर्तव्य है जिसे मुसलमानों पर रमजान के महीने में निभाने का आदेश दिया गया है। रोज़ा का उद्देश्य न केवल शारीरिक भूख और प्यास को सहन करना है बल्कि आत्मा की शुद्धि, आत्मनियंत्रण और अल्लाह के प्रति आस्था को और अधिक बढ़ाना भी है।

रोज़े के दौरान मुसलमान सूर्योदय अर्थात सुबहे सादिक से लेकर सूर्यास्त तक खाना और पीना छोड़ते हैं। साथ ही बुरी आदतों से बचने का प्रयास करते हैं। यह समय और महीना आत्म-नियंत्रण, इबादत और आत्ममंथन का होता है। रोज़े से व्यक्ति में धैर्य, सहनशीलता और दूसरों के प्रति सहानुभूति बढ़ती है।

रमजान के महीने में रोज़ा रखने से न केवल व्यक्ति की धार्मिक भावना प्रबल होती है बल्कि वह गरीबों और ज़रूरतमंदों के लिए एक सामाजिक संदेश भी देता है कि हम अपने आराम और समृद्धि का कुछ हिस्सा दूसरों के साथ साझा करें। इस्लाम में रोज़ा रखने से व्यक्ति को सवाब और अल्लाह की विशेष कृपा मिलती है और यह विश्वास है कि रमजान के महीने में किए गए अच्छे कार्यों का विशेष इनाम भी मिलता है।

इसी प्रकार रमज़ान में तीस दिन के रोज़े इंसान को जिस्मानी व रूहानी तौर पर मजबूत बनाते हैं। रोजा जिस्म की अंदरूनी बीमारियों का खात्मा करने का बेहतरीन माध्यम है। बूढ़े_पुरनियां और खान_पान पर पैनी नज़र रखने वालों द्वारा माना जाता है कि पहले दो रोजे से ब्लड शुगर लेवल गिरता है अर्थात खून से शूगर के गंभीर खतरे कम हो जाते हैं। इसी तरह तेज़ धड़कने वाली दिल की धड़कन सुस्त हो जाती है और खून का दबाव कम हो जाता है। नसों में जमा ग्लुकोज़ आज़ाद हो जाते हैं जिसके कारण शरीर में कमज़ोरी का एहसास होने लगता है लेकिन ज़हरीले तत्वों की सफाई के पहले स्टेज के नतीज़े में-सरदर्द, सर का चकराना और मुंह की बदबू खत्म होने लगती है।

इसी प्रकार तीसरे से सातवें रोज़े तक जिस्म की चर्बी टूट-फूट का शिकार होती है और पहले स्टेज में ग्लूकोज में परिवर्तित जाती है। कुछ लोगों की तो त्वचा मुलायम और चिकनी हो जाती है जिससे शरीर भूख का आदी होना शुरू हो जाता है और इस तरह साल भर बिज़ी रहने वाला पाचन सिस्टम ठीक रहने लगता है। हो सकता है कि रोज़ेदार के फेफड़ों में मामूली तकलीफ़ का एहसास हो इसलिए कि ज़हरीले माद्दों (पदार्थों) की सफाई का काम शुरू हो चुका होता है और आंतों की मरम्मत का काम भी शुरू हो चुका होता है। इसी प्रकार आंतों की दीवारों पर जमा मवाद भी ढीला होना शुरू हो जाता है।

आठवें से पंद्रहवें रोज़े तक रोज़ेदार पहले से ज्यादा चुस्त महसूस करता है। जिस्म अपने मुर्दा

सेल्स को खाना शुरू कर देता है जिनको आमतौर से केमोथेरेपी से मारने की कोशिश की जाती है। इसी वजह से सेल्स में पुरानी बीमारियों और दर्द का एहसास बढ़ जाता है। नाडिय़ों और टांगों में तनाव इसी अमल का नतीजा होता है। जो इम्युनिटी के जारी अमल की निशानी है। इसमें रोज़ाना नमक के गरारे नसों की अकड़न का बेहतरीन इलाज है।

अब सोलहवें से तीसवें रोज़े तक इंसानी जिस्म पूरी तरह भूख और प्यास को बर्दाश्त का आदी हो चुका होता है। वह अपने आप को चुस्त, चाक व चौबंद महसूस करने लगता है। उन दिनों उसकी ज़बान बिल्कुल साफ़-सुथरी हो जाती है। सांस में भी ताजगी आ जाती है। जिस्म के सारे जहरीले तत्वों का खात्मा हो चुका होता है। पाचन सिस्टम की मरम्मत हो चुकी होती है। शरीर से बेकार चर्बी और बेकार तत्व निकल चुके होते हैं। बदन अपनी पूरी ताक़त के साथ अपने कर्तव्यों को निभाना शुरू कर देता है।

बीस रोजों के बाद याददाश्त तेज़ हो जाती है। तवज्जो और सोच को केंद्रीकृत करने की क्षमता बढ़ जाती है और इस प्रकार बदन और रूह तीसरे अशरे में हर कर्तव्यों को अदा करने हेतु सक्षम हो जाते हैं। हमेशा की तरह रमजान में भी पांचों वक्त नियमित नमाजें अदा करने से शारीरिक व मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है तथा इंद्रियों पर वश पाने की क्षमता में बढ़ोतरी हो जाती है। रोज़ा बुराइयों को कोसों दूर भगाने में मदद करती है जिससे शरीर में पलने वाले परजीवी का खात्मा होता है।

कुल मिलाकर रोज़ा का सेहत पर अनेक सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं जैसे वजन कम करने में रोज़ा मदद करता है क्योंकि एक निर्धारित समय तक मुसलमानों को भोजन और पानी से परहेज करना होता है, जो वजन कम करने में सहयोगी बनता है। इसी प्रकार मधुमेह जिसका ऊपर ज़िक आया को नियंत्रित करने में रोज़ा मदद करता है। हार्ट के मरीजों, पेट के मरीजों और टेंशन से ग्रस्त लोगों की बीमारी को नियंत्रित करने में रोज़ा भरपूर मदद करता है।

रोज़ा रखने के दौरान स्वास्थ्य हेतु कुछ का ध्यान देने वाली बातें हैं कि रोजेदार को पर्याप्त पानी पीना चाहिए ताकि वह डिहाइड्रेशन से बच सकें। रोज़ा रखने के दौरान रोजेदार को स्वस्थ भोजन करना चाहिए ताकि वे अपने शरीर को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान कर सकें। इसी प्रकार उन्हें हल्का व्यायाम भी करना चाहिए ताकि वे अपने शरीर को सक्रिय रख सकें।