माहे रमजान : "तरावीह" क्या होती है? जाने मुस्लिमो के 5 फर्ज

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय
कुछ शोसल मीडिया मित्र इनबॉक्स में पूछ रहे हैं कि "तरावीह" क्या होती है ?
दरअसल इस्लाम में मुसलमानों के लिए 5 फ़र्ज़ अनिवार्य हैं , अर्थात 5 अनिवार्य "कर्तव्य" हैं अर्थात इसे इस्लाम के मानने वालों के लिए अनिवार्य किया गया है....
1-शहादा - यह इस्लाम में दाखिल होने की पहली शर्त है, अर्थात'
"ला इलाहा इलल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाहि'
यह इस्लाम धर्म का मूल मंत्र है। इसका मतलब है कि अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के दूत हैं।
2-नमाज़ - यह दूसरा ऐसा फ़र्ज़ है जो होश ओ हवास में होने पर किसी भी हाल में माफ़ नहीं है। इतना मजबूर हैं कि खड़े होकर पढ़ना संभव नहीं तो बैठ कर पढ़िए, बैठ कर पढ़ना संभव नहीं तो लेट कर पढ़िए, हाथ पैर हिल नहीं रहें हैं और दिमाग काम कर रहा है तो दिल में पढ़िए...मगर पढ़ना है, इसकी कोई माफ़ी नहीं।
बाकी तीनों की माफ़ी है
3-ज़कात , की माफ़ी तब है जब एक तय सीमा के अंदर किसी मुसलमान की इनकम या सोना चांदी और संपत्ति हो , इसके ऊपर होने पर कुल का 2.5% ज़कात सबसे पहले अपने गरीब रिश्तेदारों और करीबी लोगों और फिर ज़रुरतमंद में बांटना अनिवार्य है।
ज़कात का सिस्टम 1400 साल पहले शुरू हुआ तब दुनिया में किसी भी प्रकार की साइंटिफिक टैक्स व्यवस्था नहीं थी , दुनिया भर में स्टैंडर्ड डिडक्शन समेत आयकर प्रणाली का मूल आधार "ज़कात" का सिस्टम ही है।
4-रोज़ा :- यह स्वास्थ पर आधारित फ़र्ज़ है , यदि रोज़ा रहना स्वास्थ कारणों से संभव नहीं तो माफ़ है। सुर्योदय से सुर्यास्त तक भूखा प्यासा रहना ही सिर्फ़ रोज़ा नहीं है बल्कि अपनी सभी इन्द्रियों को नियंत्रित रखना कि वह ना गलत देखें, ना गलत सुनें, ना गलत बोलें ना ग़लत सोचें, अर्थात दिमाग में किसी भी प्रकार का गलत बात आने ना दें, मुसलमानों में गलत से मतलब हराम से है।
5-हज :- हज भी मुसलमानों के आर्थिक आधार पर आधारित है , यदि किसी के पास पैसा है और वह हज करना चाहता है , मगर उस पर क़र्ज़ है , लड़की की शादी बाकी है जो उसी पैसे से ही संभव है तो पहले सबका क़र्ज़ चुकाना चाहिए, बेटी की शादी करना चाहिए, इसके बाद पैसे हैं तो हज अनिवार्य है।
अब आते हैं तरावीह पर , नमाज़ में सजदे के पहले कुरान की आयतें (श्लोक) पढ़ी जाती हैं, जो कुरान से कोई भी सेलेक्ट करके पढ़ सकते हैं।
मगर तरावीह में कुरान की पहली आयत से आखिरी आयत तक सिलसिलेवार पढ़ी जाती है, यह हर दिन 20 सजदों के पहले क्रमानुसार पढ़ी जाती है और कुरान को पढ़ कर मुकम्मल किया जाता है। रमज़ान में वैसे तो 30 दिन तरावीह को सबसे अच्छी माना गया है मगर इंसान की व्यस्तता के कारण 3 , 5, 7, 14, 21, और 29 दिन में जगह जगह तरावीह पूरी की जाती है।
अंत में, कुरान में काफ़िर शब्द ,भारत के हिंदू भाईयों के लिए नहीं बल्कि मक्का में हमारे नबी हज़रत मुहम्मद ﷺ के दुश्मनों के लिए आया है जो नबी और इस्लाम के खिलाफ मारने के लिए जंग कर रहे थे। कुरान में यह शब्द काफ़िर उसी जंग में हज़रत मुहम्मद ﷺ के दुश्मनों के लिए प्रयोग किया गया है।
जेहाद - किसी को मारने के लिए नहीं बल्कि खुद के अंदर की बुराई से जद्दोजहद करने का एक शब्द है।
फतवा - किसी भी तरह से धार्मिक परामर्श के अतिरिक्त प्रयोग का शब्द नहीं है। एक अधिकृत इस्लामिक संस्था से कोई भी मुसलमान अपने धर्म की किसी व्यवस्था से संबंधित सिर्फ़ परामर्श लेता है , उसी को फतवा कहते हैं।
उम्मीद है जवाब मिल गया होगा।
Moh. Zahid✍️