देश में साइकिल युग को वापस लाना जरूरी

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय
आज विश्व साइकिल दिवस (तीन जून) है। साइकिल का इंसान के जीवन में कितना महत्व है, यह हर कोई जानता है। निस्संदेह 'पहला सुख, निरोगी काया' तो काया को निरोगी रखने के लिए साइकिल चलाने से बेहतर कोई दूसरी चीज नहीं है। आज भी रहना है फिट तो, साइकिल चलाओ का मूलमंत्र कारगर है। नीदरलैंड तो अपनी साइकिल संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है ही, जापान, चीन, जर्मनी, बेल्जियम जैसे कई देशों में भी साइकिल मुख्य आवाजाही के साधन के रूप में इस्तेमाल की जाती है। हमारे देश में भी बहुतायत साधन के रूप में साइकिल थी। लेकिन अब ऊंगली पर गिनने वाले लोग रह गए हैं जो साइकिल का उपयोग करते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता ग्रामीण पत्रकार तौहीद अब्बासी (फाइल फोटो 2021)
यह विडंबना ही कही जाएगी की स्वस्थ रहने व मोटापा कम करने हेतु लोग पैसे देकर जिम में जाकर साइकिलिंग करेंगे, मगर रोजमर्रा में साइकिल नहीं चलाएंगे। रोज साइकिल चलाएं तो न तो जिम में जाने की जरूरत पड़े, न पैसे बिगाड़ने की। साइकिल शरीर व स्वास्थ्य के लिए तो लाभदायक है ही,पर्यावरणीय दृष्टि से भी फायदेमंद है। न धूल उड़ाती है, न धुआं, न शोर करती है, न ट्रैफिक जाम, न दुर्घटना। साथ ही पैट्रोल डीजल भी नहीं पीती है। इससे जहां जेब में पैसों की बचत होती है, वही देश के खजाने में बहुमूल्य डालर भी बचाती है। साइकिल आत्मनिर्भर भी बनाती है। भारत जैसे देश में साइकिल युग की वापसी होना चाहिए। नागरिकों को पुनः साइकिल चलाने का संकल्प लेना, हर दृष्टि से लाभकारी होगा।
साभार
हेमा हरि उपाध्याय 'अक्षत' ✍️