विचार बिंदु : युद्ध में कोई विजेता नहीं होता..

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय
हालांकि आज के माहौल में यह कहना किसी को जँचेगा नहीं , क्योंकि हर जगह जीत का जश्न है । हमने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को तबाह किया है और देश का नेतृत्व व सेना बधाई के पात्र हैं।
गोली और बम्ब किसी के सगे नहीं होते , वे बेजान होते हैं और जान लेते हैं । आप भी सोच रहे होंगे कि मैं इस माहौल में बेसुरा राग क्यों गा रहा हूँ ? इसकी भी वजह है । सैनिक लड़ते हैं और शहीद होते हैं , वे देश के लिए जीना-मरना स्वेच्छा से चुनते हैं । मेरा कोई अपना भी इस समय बॉर्डर पर है कश्मीर में ।
हमारे 15 से अधिक सीमावर्ती गांवों के लोग हताहत हुए हैं पाकिस्तानी गोलीबारी और गोलाबारी में । गाँव के गाँव खाली करवाए जा रहे हैं । मोकड्रिल चल रही हैं देश में । पूरे देश में सुरक्षा से ज्यादा दहशत महसूस की जा सकती है । बच्चों के मासूम सवालों से मेरा सामना हुआ है , जो मेरी पत्नी के मार्फत मुझ तक पहुंचे हैं । उनके सवाल बहुत मासूम हैं ....मैडम! क्या हमारे अब्बू को अब काम नहीं मिलेगा ? हम खाना कैसे खाएँगे ? एक लड़की ने पूछा था -"मैडम मेरे बाबा फल की रहाड़ी लगाते हैं , क्या बाजार बंद हो जाएँगे ? एक और ने पूछा था -"क्या हम सब मर जाएँगे ? हमने तो कुछ नहीं किया । ये सवाल बेशक अब जायज न लगें पर इनकी जगह तो है । एक युद्ध सीमा पर है और भयंकर सोच का एक युद्ध देश में भी चल रहा है। यह सोशल मीडिया पर जाकर आपको पता चल जाएगा । देश हमसे बनता है, इस नाजुक समय का दुश्मन का काम मुफ्त में बनाने की जरूरत कतई नहीं है , माहौल को देश में एक-दूसरे के खिलाफ गलत बात बोलकर या किसी को परेशान कर के ।
मैं बहुत छोटा था जब 1971 की लड़ाई हुई । बस इतना याद है कि शाम को आँगन में चूल्हा भी नहीं जला सकते थे , और पूरे मोहल्ले में भारी भरकम बूटों की आवाज आने पर अर्गन (लालटेन) बुझा दिये जाते थे। दरवाजों में कागज और कपड़े लगा दिये जाते ताकि रौशनी की एक किरण भी बाहर न जाय । 1984 में दिल्ली दंगा देखा । फिर गुजरात कांड देखा। कारगिल और भारत की स्ट्राइक देखी और अब यह ऑपरेशन सिंदूर देख रहा हूँ ।
ऑपरेशन सिंदूर पर मिठाई बांटते भी देखा है । पाकिस्तानी लोगों के जनाजे भी टीवी पर दिखाये जा रहे हैं । दावे सौ से डेढ़ सौ लोगों के मारे जाने के भी हैं । यह जरूरी भी था ताकि दुश्मनों को भी दर्द का अहसास हो । पाकिस्तान के सैनिक भी मारे गए हैं और आतंकियों को भी अपनों के जाने का अहसास हुआ है , वे भी रो रहे हैं । आतंकियों के जनाजों में पाकिस्तानी सेना शामिल हो रही है जो आतंक और पाकिस्तानी सेना के गठजोड़ को दिखाता है । बच्चों के मारे जाने का रोना रो रहा है । उसे पहले समझ क्यों नहीं आया कि यहाँ भी भारत में लोगों के बच्चे हैं । अभी सरगना शेष हैं आतंक के । वो भी जिसे खुद सरकार ने छोड़ा था अपने नागरिकों की जान बचाने के लिए ।
मुझे भारत के उन ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए गहरा शोक है जो न आतंकी थे और न सैनिक , मगर मार दिये गए । कई और मांगों का सिंदूर पोंछ दिया गया । युद्दों के अंत पर मरघट जैसी शांति, विलाप भी बातचीत से ही आता है। मगर तब तक न जाने कितना लहू बह चुका होता है । उदाहरण के लिए रूस को ही लीजिये , दूसरे विश्व युद्ध में और अब भी यूक्रेन युद्ध में लाखों लोग मारे गए हैं और रूस की जनसंख्या अपने उत्तर प्रदेश से भी कम है । वहाँ का मौसम वहाँ की परिस्थितियाँ और बूढ़ों का हुजूम उसे परेशान किए हुए है । दुआ कीजिये कि युद्ध और न भड़के , क्योंकि युद्ध में कोई नेता, कोई राजा मरे या न मरे पर आम जनता और सैनिक जरूर मरते हैं , देश कई दशक पीछे चला जाता है।
एक ओर बांग्लादेश भारत के चिकननेक पर हमले की धमकी दे रहा है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान युद्ध के कर्ज के कार्न चीन का गुलाम भी बन सकता है ....तब सामना चीन से होगा , पाकिस्तान से नहीं। हर युद्ध का खामियाजा और ब्याज जनता को ही चुकाना होता है, इसलिए ये कथन सही लगता है कि युद्ध में कोई विजेता नहीं होता, इंसानियत सहित सब हारते हैं। युद्ध अंतिम चुनाव नहीं होना चाहिए ।
साभार
केदार नाथ "शब्द मसीहा"