विकास के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ करने वाला व्यवहार उचित नहीं

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय
इक्कीसवीं सदी में दुनिया भर के विकसित व विकासशील देशों के हुक्मरान व लोग तो कम से कम यह अच्छे से जानते हैं कि प्रकृति से किसी भी प्रकार का खिलवाड़ करना धरती पर जीवन के लिए बेहद घातक है और ऐसा करने से भविष्य में बेहद भयावह परिणाम से पृथ्वीवासियों को रूबरू होना पड़ सकता है। लेकिन फिर भी दुनिया के ताकतवर लोगों की यह जमात ही विकास के नाम पर भयावह विनाश की नींव रखने का कार्य अपने ही हाथों से करने का काम कर रही है। आलम यह हो गया है कि विकास के नाम पर दुनिया भर में चल रही अंधी दौड़ जल, थल व वायु में उपस्थित सभी जीव-- जंतुओं, पेड़-पौधों आदि के जीवन पर अब भारी पड़ने लगी है। दुनिया में लोगों व जीव-जंतुओं के साथ-साथ अब पेड़-पौधे तक भी असमय काल का ग्रास बनने लगे हैं, लेकिन फिर भी हम लोग ना जाने क्यों अभी भी समय रहते हुए सुधरने के लिए तैयार नहीं हैं। हम लोग अपनी जरूरतों और आर्थिक स्वार्थों को पूरा करने के लिए जमकर के जल, थल व वायु में उपस्थित प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं।
जिस तरह से हमने भूजल का अंधाधुंध दोहन करते हुए उसको प्रदूषित करने का कार्य किया है, उसके चलते ही स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति आज एक बहुत बड़ी चुनौती बन गयी है। हमने समुद्र से बहुमूल्य संपदा निकाल करके, उसकी छाती को चीरते हुए छोटे-बड़े जहाज चला कर, समुद्र को कचरा डंप करने का एक स्थान बनाकर के, समुद्र में तेजी से - अंधकार को बढ़ाते हुए मानव व जलीय जीवों के जीवन को बड़े खतरे में डाल दिया है। आज जिस तरह से हम अपने आर्थिक हितों व जरूरतों को साधने के लिए प्रथ्वी के गर्भमें छिपी अथाह प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन करके धरती को खोखला कर रहे हैं, वह ठीक नहीं है। भूजल को रीचार्ज करने वाले स्रोतों पर कब्जा करके कंक्रीट का जाल बनने से तेजी गिरता भूजल का स्तर एक नयी चुनौती है। जिस तरह से हमने वायु प्रदूषण, हवाई यातायात व अन्य कारकों से आसमान को छलनी करने का कार्य किया है, उससे उत्पन्न स्थिति की भरपाई लोगों व जीव जंतुओं को अपना अनमोल जीवन देकर करनी पड़ रही है। लेकिन विचारणीय तथ्य यह है हम फिर भी नहीं सुधरने का नाम ले रहे हैं। दुनिया भर में प्लास्टिक का कचरा, लोहे का कचरा, मेडिकल कचरा, ई कचरा, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का कचरा, टू व फोर व्हीलर वाहनों का कचरा, विभिन्न प्रकार के केमिकलों का कचरा, परमाणु पदार्थों का कचरा आदि ने हमारे चारों तरफ की स्वच्छ प्राकृतिक आबोहवा को प्रदूषित करते हुए प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचाने का कार्य किया है। प्रकृति को नुकसान पहुंचाने की रही-सही कसर दुनिया में चल रही हथियार बनाने की होड़ व बुद्ध पूरी कर रहे हैं। दुनिया भर में पर्यावरण के लिए नुकसानदायक गैसों के उत्सर्जन से ओजोन परत को नुकसान हो रहा है?, जिसका प्रभाव सभी पर पड़ रहा है। प्रकृति से खिलवाड़ के चलते ही आज पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के भयावह दौर से गुजर रहा है, जिसके चलते पर्यावरण में होने वाले बदलाव अब धरातल पर स्पष्ट रूप से नजर आने लगे हैं। दुनिया में कहीं पर असामान्य बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है, तो कहीं पर जबरदस्त बाढ़ का प्रकोप जान माल को लीलने का काम कर रहा है, तो कहीं पर जबरदस्त सूखे की मार चल रही है, कहीं पहाड़ों के साथ विकास के नाम पर की गयी छेड़छाड़ के चलते भूस्खलन व पिघलते ग्लेशियर का प्रहार है, कहीं पर गर्म हवाओं के थपेडों की मार है, कहीं पर असामान्य बफीर्ली हवाओं का प्रहार है।
भारत के संदर्भ में देखें तो हाल ही में जारी आईडीएमसी संस्था की रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2024 के बीच भारत में 32.3 मिलियन लोग विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के कारण विस्थापित हुए हैं, जिसमें से सर्वाधिक बाढ़ और तूफान के कारण विस्थापित हुए हैं। आईडीएमसी संस्था ने चेतावनी दी है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण नदी और तटीय बाढ़, सूखे और चक्रवाती तूफानों के कारण भारत में विस्थापन का खतरा और बढ़ सकता है। आंकड़ों के अनुसार भारत में बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप तथा भूस्खलन की घटनाएं होना आम बात हैं। देश के लगभग 60 प्रतिशत भू भाग में भूकंप का खतरा हमेशा रहता है।
देश में लगभग 40 मिलियन हेक् टेवर से अधिक क्षेत्र में बाढ़ बार-बार आती रहती है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है। देश की कुल 7516 किलोमीटर लंबे तटरेखा क्षेत्र में से 5700 किलोमीटर के तटरेखा क्षेत्र में चक्रवात का खतरा बना रहता है। देश में सूखा, सुनामी, वनों के कटान से दमघोंटू प्रदूषण व वनों में आग लगने की घटनाएं आम होती जा रही हैं। हालांकि देश में जिस तेजी के साथ हम घर, घेर, खेत, खलिहानों, वन क्षेत्रों आदि से वृक्षों को काट करके कंक्रीट के जंगल खड़े करते जा रहे हैं, वह प्रकृति से खिलवाड़ का एक सबसे बड़ा उदाहरण है। जिस तरह से हम विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करने में लगे हैं, वह चिंतित करने वाला है। हमें समय रहते प्रकृति के द्वारा दिए जा रहे बार-बार के चेतावनी के संकेतों का समझना चाहिए। देश 140 करोड़ लोगों के जीवन की सुरक्षा की खातिर अब हमें नियमित रूप से प्रकृति के संरक्षण के लिए धरातल पर कार्य करने के लिए एक ठोस रूपरेखा बनानी चाहिए, तब ही भविष्य में स्थिति सामान्य रह सकती है। हालांकि प्रकृति से खिलवाड़ की स्थिति मानव जाति व हर प्रकार के जीवन के लिए बहुत ही दुखद दायक साबित होती जा रही है। फिर भी लोग अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति के साथ लगातार खिलवाड़ करते जा रहे हैं, उनका यह व्यवहार चिंतित करने वाला है। क्योंकि समय रहते अगर हम लोगों ने प्राकृतिक के साथ सामंजस्य बैठाना नहीं सीखा तो धरती पर स्वस्थ्य जीवन दूर की कौड़ी बन जायेगा। वैसे भी दुनिया भर के वैज्ञानिक और पर्यावरणविद बार-बार सचेत कर रहे है कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना अगर जल्द बंद नहीं हुआ तो एक दिन यह दुनिया से जीवन खत्म होने का सबसे बड़ा कारण बन सकता है।
साभार
दीपक कुमार त्यागी ✍️