ज्ञान और दृष्टिकोण के साथ सम्पन्न हुआ राजनीति के 'दादा'प्रणब मुखर्जी का एक युग

ज्ञान और दृष्टिकोण के साथ सम्पन्न हुआ राजनीति के 'दादा'प्रणब मुखर्जी का एक युग

रिपोर्ट_ रंजीत राय (बीएचयू)✍️

विचार‌ बिंदु..

प्रणबमुखर्जी का नाम जेहन में आते ही मेरे सामने उनकी पहली तसवीर उभरती है 31 अक्टूबर 1984 की...कोलकाता के पास किसी जगह पर वे तत्कालीन कांग्रेस महासचिव राजीव गांधी के साथ थे...इंदिरा गांधी पर उनके ही अंगरक्षकों द्वारा फायरिंग की खबर सुनने की कोशिश में राजीव गांधी कान में ट्रांजिस्टर लगाए खड़े थे.. पता नहीं वह तसवीर किसी समाचार एजेंसी के फोटोग्राफर ने ली थी...या फिर भूभारती के फोटोग्राफर ने..लेकिन वह तसवीर भूभारती में प्रमुखता से छपी थी.. भूभारती, दिल्ली प्रेस की साप्ताहिक समाचार पत्रिका थी, जो बाद में अभय भारती के नाम से निकली और फिर काल के गाल में समा गई... इंदिरा की हत्या के बाद निकले विशेषांक में उस तसवीर के साथ जो समाचार कथा छपी थी, उसमें यह भी जिक्र था कि उस वक्त राजीव गांधी से प्रणब मुखर्जी ने कहा था- ऐसे ही हालात में गुलजारी लाल नंदा को दो बार प्रधानमंत्री बनाया गया था... कांग्रेस के गलियारों में उनका यह कथित बयान खूब फैलाया गया... उनके खिलाफ राजीव गांधी के होने के पीछे इस कथित बयान को ही हथियार बनाया गया..हालांकि बाद में मुखर्जी ने कई बार स्वीकार भी किया कि उन्होंने तब राजीव गांधी से ऐसा कुछ नहीं कहा था...लेकिन कांग्रेसी इकोतंत्र में उनके बारे में यह कथन इतना फैला कि वह सच ही माना जाने लगा...गोयबल्स के सिद्धांत के अनुसार.. प्रणब दा, अब नहीं हैं..लेकिन अगर उन्होंने 31 अक्टूबर 1984 को ऐसा कहा भी था तो कोई गड़बड़ नहीं था..वे इंदिरा मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री के बाद आधिकारिक तौर पर दूसरे नंबर के मंत्री थे...Second among equals.. ---- प्रणब मुखर्जी को लेकर दूसरी तसवीर उभरती है..प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैय्यर की किताब स्कूप के हवाले से.. ताजिंदगी सच्चाई और प्रखर पत्रकारिता के पैरोकार माने जाते रहे नैय्यर ने अपनी किताब में मुखर्जी का नाम नहीं लिया है.. कुलदीप नैय्यर ने लिखा है कि जब वे द स्टेट्समैन के संपादक थे, तब एक बंगाली सांसद ने उन्हें एक शाम चाय पर आमंत्रित किया...उनके तालकटोरा रोड के घर पहुंचा तो बैठने तक का माकूल इंतजाम नहीं था...उनके घर चटाई पर बैठकर ही उन्होंने बात की... नैय्यर इस वाकये का जिक्र करते हुए अपना पर्यवेक्षण भी दर्ज करते हैं..वे कहते हैं कि दरअसल उस बंगाली सांसद की पत्नी शास्त्रीय गायिका थी...वे चाहते थे कि मैं अपने अखबार में उनकी पत्नी पर कुछ लिखूं.. --- प्रणब मुखर्जी की एक और छवि मन में उभरती है...देश के जाने माने उद्योगपति धीरूभाई अंबानी के दोस्त की...कुछ लोग तो दबी जुबान में कहते हैं कि रिलायंस को बड़ा बनाने में प्रणब दा का भरपूर सहयोग रहा.. संसद में एक बार किसी बहस में जब रिलायंस का जिक्र आया था तो तब के विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजयेपी ने रिलायंस से प्रणब के रिश्ते को लेकर चुटीली टिप्पणी की थी, 'रिलायंस या Real Alliance' प्रणब मुखर्जी से अंबानी परिवार के रिश्ते कैसे रहे, इसे समझने के लिए मुकेश अंबानी की बेटी की शादी के दिन के दृश्य याद किए जा सकते हैं.. जब मुखर्जी अंबानी के घर पहुंचे तो दरवाजे पर अतिथियों के स्वागत में खड़े अनिल अंबानी ने उनके कंधे पर हाथ रखकर उन्हें घर के अंदर पहुंचाया था... कितने लोगों की हैसियत होती है कि वे पूर्व राष्ट्रपति के कंधे पर हाथ रख सकें.. ---- 2004 के आम चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ा दल भले ही बन गई थी, लेकिन सत्ता तक उसकी पहुंच आसान नहीं थी...कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाने और राजनीतिक दलों से बातचीत करके उन्हें अपने साथ लाने में प्रणब मुखर्जी ने बड़ी भूमिका निभाई..लेकिन सोनिया गांधी ने उन्हें मौका ना देकर उस मनमोहन सिंह पर भरोसा जताया, जो रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को रिपोर्ट कर चुके थे... प्रणब मुखर्जी को इसका मलाल रहा...भले ही उन्हें राष्ट्रपति बना दिया गया.. कुछ लोगों का मानना है कि सोनिया, प्रणब दा की वह बगावत भूल नहीं पाई, जब उन्होंने राजीव गांधी से अलग होकर राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बनाई थी...तब उनके चितरंजन पार्क स्थित घर पर केंद्र सरकार की तमाम एजेंसियों ने छापा मारा था.. बाद में वित्त मंत्री रहते उनके दफ्तर की जासूसी कराने को लेकर तत्कालीन गृहमंत्री चिदंबरम् भले ही सवालों के घेरे में आए..लेकिन इसके पीछे भी कांग्रेस आलाकमान के संकेत भी राजनीतिक गलियारों में ढूंढ़े जाते रहे.. प्रणब दा भले ही राष्ट्रपति बन गए, लेकिन मेरा मानना है कि उन्हें इस पद तक पहुंचाने की परोक्ष शुरूआत भारतीय जनता पार्टी ने ही की थी। 2012 के बजट प्रस्तावों पर विपक्षी बेंच से बहस की शुरूआत करते हुए यशवंत सिन्हा ने पहली लाइन में कहा था, दादा को अब दूसरी भूमिका में जाना है.. ----- कथित दक्षिणपंथ और कथित लेफ्ट-लिबरल की वैचारिक जंग में जिस तरह कांग्रेस ने संघ विचार परिवार और भारतीय जनता पार्टी को अछूत बनाने की कोशिश जारी रखी है, उस दौर में भी प्रणब दा इसलिए याद रखे जाएंगे..क्योंकि उन्होंने 2018 के संघ के सालाना कार्यक्रम में ना सिर्फ हिस्सा लिया..बल्कि तमाम विरोधों को दरकिनार करते हुए भाषण भी दिया... ---- डंकेल प्रस्तावों पर बतौर वाणिज्य मंत्री अफ्रीकी देश मराकेश में प्रणब मुखर्जी ने ही अप्रैल 1994 में हस्ताक्षर किए थे... लगे हाथों एक और जानकारी पर ध्यान दिया जाना चाहिए... 1967 के दिनों में प्रणब मुखर्जी, कांग्रेस से अलग हो चुकी अजय मुखर्जी वाली बांग्ला कांग्रेस के साथ थे। इसी साल हुए चुनाव में कांग्रेस विरोधी गठबंधन में तत्कालीन जनसंघ भी शामिल था और कोलकाता के बड़ा बाजार से जनसंघ का विधायक भी चुना गया था...अजय मुखर्जी की अगुआई में पश्चिम बंगाल में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी.. ---- प्रणब दा को विनम्र श्रद्धांजलि