जानिए ईद उल अजहा का क्या है महत्व और क्यों दी जाती है कुर्बानी

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय
ईद-उल-अजहा यानी बकरीद इस साल 7 जून यानी आज मनाई जा रही है। यह पर्व इस्लाम धर्म का सबसे पवित्र त्यौहार है। इस्लाम में साल भर में दो ईद मनाई जाती हैं एक को मीठी ईद कहा जाता है और दूसरी बकरीद ईद सबसे प्रेम करने का संदेश देता तो वहीं बकरीद अपना कर्तव्य निभाने का और अल्लाह पर विश्वास रखना सिखाता है। गांव मुहम्मदपुर टंडवा निवासी समाजसेवी एवं सौहार्द बंधुत्व मंच साथी बिग्गन जी ने बताया कि ईद-उल-अजहा को कुर्बानी का दिन भी कहा जाता है क्योंकि, इस दिन अल्लाह को खुश करने के लिए जानवरों की कुर्बानी दी जाती है। उन्होंने बताया कि यह पर्व मुख्य रूप से हजरत इब्राहिम द्वारा अपने बेटे हजरत इस्माइल की कुर्बानी देने की इच्छा की याद में मनाया जाता है। इस्लाम धर्म के लोग इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। इस्लाम धर्म का यह त्योहार बलिदान का प्रतीक माना जाता है।
बकरीद का धार्मिक महत्व
समाजसेवी शिक्षक सिधागरघाट निवासी नौशाद अहमद ने बताया कि इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार बकरीद का त्यौहार हजरत इब्राहिम द्वारा अपने बेटे हजरत इस्माइल की कुर्बानी देने की याद में मनाया जाता है। यह पर्व अल्लाह के प्रति विश्वास को भी दर्शाता है। दरअसल, हजरत इस्माइल अल्लाह पर बहुत विश्वास करते थे यही विश्वास दिखाने के लिए उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए थे। हालांकि जैसे ही उन्होंने तलवार उठाई अल्लाह के हुक्म से उनके बेटे की बजाए एक दुबा (भेड़ जैसी कोई प्रजाती) वहां पर आ जाती है. इसी के आधार पर आजकल लोग बकरे की कुर्बानी देते हैं।
बकरीद के दिन क्यों दी जाती है कुर्बानी
बकरीद के दिन कुर्बानी देने का एक किस्सा है जिसकी शुरुआत हजरत इब्राहिम के समय शुरू हुई थी। हजरत इब्राहिम को अल्लाह का पला पैगंबर कहा जाता है। कहा जाता है कि, इब्राहिम अपने भगवान पर खुद से भी ज्यादा भरोसा करते थे। मान्यता है कि, एक बार एक फरिश्ते के कहने पर अल्लाह ने अपने भगवान का इम्तिहान लेने का फैसला लिया। समाजसेवी जमील खान बताया कि उसके बाद अल्लाह उसके सपने में जाकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज को कुर्बानी करने के लिए कहते हैं। ऐसे में हजरत ने अल्लाह का फरमान मानकर अपने बेटे इस्माइल को कुर्बानी करने को ठान लिया. जब हजरत अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर बेटे को कुर्बानी देने के लिए तलवार निकालता है तभी अल्लाह के फरिश्ते ने उनके बेटे की जगह एक जानवर को रख देता है। इस वजह से इस्लाम धर्म के लोग बकरीद के दिन जानवरों की कुर्बानी देते हैं
क्यों दी जाती है कुर्बानी?
ईद-उल-अजहा हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है. इस दिन इस्लाम धर्म के लोग किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं. इस्लाम में सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है. कुर्बानी का गोश्त अकेले अपने परिवार के लिए नहीं रख सकता है. इसके तीन हिस्से किए जाते हैं. पहला हिस्सा गरीबों के लिए होता है. दूसरा हिस्सा दोस्त और रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा अपने घर के लिए होता है.
कैसे जानवर की कुर्बानी की जाती है?
इस्लाम में ऐसे जानवरों की कुर्बानी ही जायज मानी जाती है जो जानवर सेहतमंद होते हैं. अगर जानवर को किसी भी तरह की कोई बीमारी या तकलीफ हो तो अल्लाह ऐसे जानवर की कुर्बानी से राजी नहीं होता है।
ईद-उल-अजहा यानी बकरीद सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि खुशियों, मेलजोल और इंसानियत का भी प्रतीक है. भारत सहित कई देशों में बकरीद के दिन की शुरुआत ईद की नमाज से होती है. लोग इस दिन नए कपड़े पहनते हैं, एक-दूसरे को 'ईद मुबारक' कहते हैं और तोहफे तथा मिठाइयां बांटते हैं. साथ ही, ईद के मौके पर गरीबों को दान किया जाता है. जहां सऊदी अरब एक दिन पहले बकरीद मनाते हैं, वहीं भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और मलेशिया में यह त्योहार आमतौर पर एक दिन बाद मनाया जाता है.