विचार बिंदु : चौधरी चरण सिंह जन्मदिवस विशेष

रिपोर्ट- प्रेम शंकर पाण्डेय
चौधरी चरण सिंह के पहले बाबा रामचंदर और स्वामी सहजानंद दो ऐसे किसान नेता हुए हैं, जिन्होंने क्रमशः पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में किसानों के ऐसे जन आंदोलन खड़े किये, जिनसे ब्रिटिश सरकार की नींद उड़ गई थी। यद्यपि उनके पहले गांधी ने चंपारण सत्याग्रह के जरिये किसानों को निलहे अंग्रेजों से मुक्ति दिलाई थी। अंग्रेजों ने अपनी भूमि सुधार नीतियों से भारत के किसानों से उनकी ज़मीन छीन ली थी और फसलें, बोने काटने का उनका अधिकार भी। वे किसानों की ज़मीन ले कर उन्हें बंधुआ मज़दूर बनाते और योरोप के बाज़ारों के लिए नील (INDIGO) की खेती करवाते। भारत के किसानों के लिए बाज़ार के लिए खेती कराना नागवार था। गांधी जी ने 1917 में इसके ख़िलाफ़ सत्याग्रह शुरू किया और अंततः ब्रिटिश सरकार ने 1918 चंपारण कृषि क़ानून बना कर किसानों को नील खेती से मुक्त किया। 1929 में स्वामी सहजानंद ने बिहार प्रांतीय किसान सभा बना कर किसानों को ज़मींदारों के क़ब्ज़े से मुक्त कराने के लिए ज़बरदस्त आंदोलन चलाया था। उनके गांधी जी से मतभेद थे। किसानों के लिए वे गांधी जी से भिड़ गए थे। 1938 के उनके बाकाश्त किसान आंदोलन ने किसानों में एका पैदा किया। बाबा राम चंदर ने 1920 में युक्त परांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में किसान सभा बनाई और अयोध्या, इलाहाबाद को केंद्र बना कर किसान आंदोलन चलाया। उनके भी गांधी जी और नेहरू जी से मतभेद थे। लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की।
इसके बाद आते हैं चौधरी चरण सिंह। उनका जन्म 1902 में तत्कालीन मेरठ ज़िले में नूरपुर गांव में हुआ था। आगरा विश्वविद्यालय से उन्होंने बीएससी किया और फिर इतिहास में एमए। उन्होंने मेरठ कॉलेज से लॉ की डिग्री ली और वकालत शुरू की। इसके बाद वे गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़े और आर्य समाज से भी। उस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के जाटों में आर्य समाज का काफ़ी असर था। आर्य समाज के सुधार कार्यक्रमों के चलते जाट किसान खूब पढ़-लिख गए और उनके अंदर जातीय चेतना का भी संचार हुआ। चौधरी चरण सिंह ने इस चेतना का प्रसार वृहत्तर किसान सुधार कार्यक्रमों से जोड़ा। 1937 में आज़ादी के पूर्व जो विधान सभा चुनाव हुए थे उनमें संयुक्त प्रांत (UP) की विधानसभा में छपरौली (तब मेरठ और अब बागपत ज़िला) से वे विधायक चुने गए थे।
अगले ही वर्ष चौधरी चरण सिंह सदन में किसानों के लिए कृषि उत्पादों को बाज़ार से सीधे जोड़ने का प्रस्ताव लाए, जिस पर हंगामा मच गया था। आज़ादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सोवियत संघ की तर्ज़ पर सहकारी खेती का प्रयोग करना चाहते थे किंतु चौधरी चरण सिंह इसके ख़िलाफ़ थे। वे किसानों को उसकी खेतिहर ज़मीन पर अधिकार देने के समर्थक थे। उत्तर प्रदेश ज़मींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार क़ानून 1952 उन्होंने पारित कराया। बतौर कृषि मंत्री 1953 में पटवारी हड़ताल से निपटने के उन्होंने लेखपाल पद का सृजन किया और पटवारियों को ख़त्म कर दिया। 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण क़ानून बनवाया। तीन अप्रैल 1967 को चौधरी चरण सिंह पहली बार संविद सरकार में यूपी के मुख्यमंत्री बने। एक वर्ष के भीतर ही उन्होंने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। 1970 की 18 फ़रवरी को वे पुनः मुख्यमंत्री बने और अक्तूबर 1970 में हट गए।
चौधरी चरण सिंह की राजनीति कांग्रेस से शुरू हुई और 1967 में उन्होंने लोक दल बना लिया। इमरजेंसी के बाद वे जनता पार्टी में आ गए। 1977 का लोकसभा चुनाव जनता पार्टी लोकदल के चुनाव चिन्ह पर लड़ी थी। जनता पार्टी सरकार में वे पहले केंद्रीय गृह मंत्री बनाए गए। किंतु पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ चौधरी चरण सिंह कड़ाई बरतना चाहते थे मगर प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई उनके इस निर्णय के ख़िलाफ़ थे। सरकार से मतभेद बढ़े तो उन्होंने डेढ़ वर्ष के भीतर पद से इस्तीफ़ा दे दिया। छह महीने बाद मोरारजी देसाई ने चरण सिंह को उप प्रधानमंत्री बना दिया साथ ही केंद्रीय वित्त मंत्रालय भी उन्हें सौंपा.।16 जुलाई 1979 को वे मोरारजी कैबिनेट से अलग हो गए और 28 जुलाई 1979 को कांग्रेस की मदद से वे प्रधानमंत्री बन गए। लेकिन इंदिरा गांधी ने संसद में भरोसा जीतने के पहले ही चरण सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। लोकसभा के मध्यावधि चुनाव कराये जाने का फ़ैसला हुआ और तब तक प्रधानमंत्री के पद पर चौधरी चरण सिंह रहे।
आज चौधरी चरण सिंह का जन्म दिन है, उनकी स्मृतियों को नमन!
लेखक
शंभुनाथ शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार