गृहिणी गीता राय की कविता_ नेह तेल से सींच बाती फिर करेंगा नव प्रकाश

गृहिणी  गीता राय की कविता_  नेह तेल से सींच बाती फिर करेंगा नव प्रकाश

रिपोर्ट- प्रेम शंकर पाण्डेय ✍️

दीप की ये पंक्ति कतार

हर रही धरा का अंधकार।

ज्योति की लौ पुंज से जब

जगमगायेगी ये वसुधा।

चीर सीना अंधकार का

फैल जायेगा उजाला।

फिर न होगी इस धरा पर

काली घटा की अभिशप्त काया।

रात भी दिन सा लगेगा

और छटेगी हर निराशा।

जब हवा का तीव्र झोंका

बुझा देगा जलता चिराग।

नेह तेल से सींच बाती

फिर करेगा नव प्रकाश।

गा रही हैं .दीपमालाएं

आज होगा तम का विनाश ।

अमावस्या के इस तिमिर में

आशाकी नव ज्योति जलाकर

"गीत "के नव सुर मे गूँजेगी फि

ये अवनी और अंबर।

              लेखिका-????????गीता राय "गीत"✍️