भरोसे का दूसरा नाम है सोफिया कुरैशी

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय
मै भूलकर भी सोफिया कुरैर्श के बारे में न लिखता. मै जब लिखता हूँ तब लोगों की भावनाएं आहत हो जाती है. ऐसा होना स्वाभाविक है, क्योंकि मै सच लिखता हूं, बेखौफ और बिना लाग लपेट के लिखता हूं. सोफिया कुरेशी के बारे में भी मै ससम्मान और निर्लिप्त भाव से लिख रहा हूं क्योंकि सोफिया कुरेशी भरोसे का दूसरा नाम बन चुकी है.
कर्नल सोफिया कुरेशी हमारी सेना में कल भर्ती नहीं हुई. उसे सेना में काम करने का लंबा तजुर्बा है. सोफिया खानदानी सैनिक है. सोफिया कुरेशी के पिता, दादाभी सैनिक रहे हैं. और पति भी सैनिक हैं. सोफिया कल भी सेना में थी, आज भी है और सेवानिवृत होने तक रहेगी. मुमकिन है कि सोफिया कुरेशी के बच्चे भी सेना को ही अपने कैरियर के लिए चुनें.
दर असल सोनिया को पाकिस्तान के खिलाफ आपरेशन सिंदूर के लिए उसकी योग्यता की वजह से तो चुना ही गया, लेकिन उसकी विशेष योग्यता उसका मुसलमान होना भी है. सरकार ने एक तीर दो निशाने साधे. कर्नल सोफिया की देशभक्ति की भी परीक्षा ले ली और अपने ऊपर लगे मुस्लिम विरोधी होने के धब्बे भी धोने की नाकाम कोशिश कर ली. नये वक्फ कानून के बाद देशभर में अल्पसंख्यकों का जो गुस्सा फूटा था, उससे सरकार घबडा गई थी. दुर्भाग्य से पाक प्रशिक्षित आतंकियों ने पहलगाम नरसंहार कर डाला. इस हादसे को भी मुसलमानो के खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश की गई किंतु सोफिया की बिरादरी ने आतंकी घटना की एक सुर से मुखालफत कर इस कोशिश को भी नाकाम कर दिया.
जनक्रोश को देखते हुए जब पाकिस्तान के खिलाफ आपरेशन शुरू करने की नौबत आई तो सबसे पहले आपरेशन के नामकरण में वही दृष्टि अपनाई गई जो अमूमन सरकार के हर फैसले के समय अपनाई जाती है. यानिआपरेशन का नाम रखा गया सिंदूर. आपरेशन की कमान दी गई कर्नल सोफिया कुरेशी और व्योमिका सिंह को. ताकि समरसता का विश्वव्यापी संदेश जाए एक अल्पसंख्यक, दूसरी बहुसंख्यक समाज का प्रतिनिधित्व करती है. हमारे देश और सेना का अस्ल चेहरा यही है. हम अलग अलग हैं ही नहीं. थे ही नहीं.
खुशी की बात है कि कर्नल सोफिया कुरेशी ने आपरेशन सिंदूर को एक सिद्धहस्त सैनिक की तरह अंजाम दिया. आतकियों के ठिकाने नेस्तनाबूत किए और अपनी महिला तथा मुस्लिन बिरादरी के साथ ही देश का मान बढाया. मजे की बात ये है कि आपरेशन सिंदूर की कानयाबी का श्रेय सरकार से इतर भाजपा जिस ढंग से लूटना चाहती थी, लूट नहीं सकी. श्रेय सेना, सोफिया और व्योमिका को ही मिला. आरती भी इन्हो दोनों की उतारी जा रही है. अभिनंदन भो इन्ही दोनों का हो रहा है. अब मुसलमानों को मंगलसूत्र लुटेरा या पंचर जोडने वालों की कौम बताने वालों की बोलती बंद है. इसके लिए पूरा देश कर्नल सोफिय कुरेशी का शुक्रगुजार है.
आइये एक नजर कर्नल सोफिया कुरैशी की जन्मकुंडली पर भी डाल लेते हैं. सोफिया कुरैशी मूल रूप से गुजरात की रहने वाली हैं. उनका जन्म 1981 में वडोदरा, गुजरात में हुआ. उन्होंने बायोकेमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है. कई रिपोर्टस में बताया गया कि सोफी? या के दादा भी सेना में थे और उनके पिता ने भी कुछ वर्षों तक सेना में धार्मिक शिक्षक के रूप में सेवाएं दीं. एक अन्?य रिपोर्ट में बताया गया है कि सोर्का?या की शार्द मैके नाइज्ड इन्फेंट्री के एक सेना अधिकारी मेजर ताजुद्दीन कुरैशी से हुआ है और उनका एक बेटा समीर कुरैशी है.
भारतीय सेना में सोफिया की एंट्री 1999 में हुई. उन् होंने 1999 में चेन्नई स्थित ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी से प्रशिक्षण प्राप्त किया. इसके बाद सोर्फा?या ने सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन प्राप्त किया. वर्ष 2006 में सोफी? या ने कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन में सैन्य पर्यवेक्षक के रूप में सेवा दी. वह 2010 से शांति स्थापना अभियानों से जुड़ी रही हैं. पंजाब सीमा पर ऑपरेशन पराक्रम के दौरान उनकी सेवा के लिए उन्हें जनरल फिया कुरेशीऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ का प्रशंसा पत्र भी मिल चुका है. उत्तर-पूर्व भारत में बाढ़ राहत कार्यों के दौरान उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें सिग्नल ऑफिसर इन चीफ का प्रशंसा पत्र भी मिला था. उन्हें फोर्स कमांडर की सराहना भी मिली.
लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी उस समय भी सुर्खियों में आई थीं. जब उन्होंने एक बहुराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास में भारतीय दल की अगुवाई की थी. तब वह ऐसा करने वाली भारतीय सेना की पहली महिला अधिकारी बन गई थीं. इस अभ्यास का नाम एक्सरसाइज फोर्स 18 दिया गया था, जो भारत की ओर से आयोजित उस समय का सब्से बड़ा विदेशी सैन्य अभ्यास था. लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी इस अभ्यास में भाग लेने वाले 18 दलों में एकमात्र महिला अधिकारी थीं. भारतीय दल में कुल 40 सदस्य थे. उस समय वह भारतीय सेना की सिग्नल कोर की अधिकारी थीं.
भारत के मुसलमान पाकिस्तान के मुसलमान नहीं हैं. उनमें शहीद अब्दुल हमीद भी होते हैं, अब्दुल कलाम भी और सोफिया कुरेशी भी. भारत के मुसलमानों को औरंगजेब की औलाद कहकर लाछित नहीं किया जा सकता. उन्हे परेशन करने के लिए बुलडोजर संहिता का इस्तेमाल संकीर्णता है. आपरेशन सिंदूर से सबक सीखिए, स्वीकार मुप् कीजिये कि हिंदू हो या मुसलमान, सिख हो या ईसाई, सब के तब देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता के लिए बलिदान, कर्तव्यनिष्ठा में सबसे आगे हैं, क्योंकि हम सब हिंदुस्तानी हैं.
हमारे लिए अतिरिक्त खुशी की बात ये है कि सोफिया भले ही गुजरात में बस गई हो किंतु उसकी गर्भनाल बुदिलखंड में है. बुंदेलखंड की धरती यूं भी सूरमाओं की धरती है. रानी लक्ष्मी बाई की धरती है. आल्हा, ऊदल की धरती है. हरदौल की धरती है. छत्रसाल की धरती है. सोफिया कुरेशी जिंदाबाद, व्योमिका जिंदाबाद, भरत की सेना जिंदाबाद. आज मुझे राष्ट्र कवि दद्दा मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियाँ याद आ रहीं हैं. दद्दा लिख गए-
मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती, भगवान !
भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती।
एक महत्वपूर्ण बात और जो साथी रमाशंकर सिंह ने याद दिलाई है वो ये कि युद्ध बाजार के अंतर्राष्ट्रीय पिशाच गिद्ध व्यापारी भारत पाकिस्तान की उत्तरी पश्चिमी सीमा पर मँडराने लगे हैं। खरबों का धंधा दिख रहा है! शुरू में उधार, बाद में यूक्रेन की तरह वसूलो ! भारत को इस खूनी साज़िश से बचना चाहिये !
साभार
राकेश अचल✍️