अधूरी शादी का प्रतीक क्यों मानी जाती है कासिम की मेहंदी

अधूरी शादी का प्रतीक क्यों मानी जाती है कासिम की मेहंदी

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय 

मोहर्रम के अवसर पर शिया समुदाय में कासिम की मेहंदी एक अत्यंत महत्वपूर्ण और भावनात्मक रस्म मानी जाती है। यह रस्म इमाम हुसैन के भतीजे और इमाम हसन के बेटे हज़रत कासिम इब्न हसन की शहादत की याद में निभाई जाती है। इतिहास के अनुसार, कर्बला की लड़ाई में हज़रत कासिम ने बहुत कम उम्र में शहादत प्राप्त की थी और उनकी याद में यह रस्म आज भी जीवित है। कासिम की मेहंदी अधूरी शादी का प्रतीक मानी जाती है। कर्बला जाने से पहले उनकी शादी इमाम हुसैन की बेटी से तय हुई थी, लेकिन शहादत के कारण यह विवाह पूरा नहीं हो सका। इस रस्म में प्रतीकात्मक रूप से मेहंदी की रस्म अदा की जाती है, जो उनकी अधूरी शादी और बलिदान की याद दिलाती है। मोहर्रम की 6वीं या 7वीं तारीख को यह रस्म अदा की जाती है।

मेहंदी को बड़ी थाली या परात में घोलकर तैयार किया जाता है, जिसे फूलों, मोमबत्तियों और हरे कपड़ों से सजाया जाता है। मेहंदी को ढोल-ताशों, नौहों और मर्सियों के साथ इमामबाड़ों या घरों से जुलूस की शक्ल में निकाला जाता है। लोग मातम करते हैं, शोकसभाएं होती हैं, और कर्बला की घटनाओं का विस्तार से जिक्र किया जाता है। इस रस्म के दौरान कुछ लोग प्रतीकात्मक रूप से अपने हाथों में मेहंदी लगाते हैं, जिससे यह दर्शाया जाता है कि वे हज़रत कासिम के गम में शरीक हैं। साथ ही नियाज़ तैयार कर गरीबों और जरूरतमंदों में बांटा जाता है, जिसका सवाब हज़रत कासिम और कर्बला के शहीदों को नज़र किया जाता है। कासिम की मेहंदी की यह रस्म केवल परंपरा नहीं बल्कि बलिदान, दुख और निष्ठा की गहन अभिव्यक्ति है, जो कर्बला के अमर संदेश को हर पीढ़ी में जीवित रखती है। यह रस्म इमाम हुसैन और उनके परिवार के प्रति अटूट प्रेम और भक्ति का प्रतीक भी मानी जाती है।