ज़रा याद करो कुर्बानी... वीर अब्दुल हमीद

ज़रा याद करो कुर्बानी... वीर अब्दुल हमीद

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय 

आज भारत की रक्षा करते हुए शहीद हो गए मरणोपरांत परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद का जन्मदिन है। उनको किसी ने भी याद नहीं किया...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज वैंकैया नायडू को उनके जन्मदिन की बधाई दी तो डाक्टर और चार्टर्ड अकाउंटेंट को भी बधाई दी मगर वह वीर अब्दुल हमीद को याद करना भूल गए, हमेशा ही भूलते हैं।

राहुल गांधी भी भूल गए, सभी लोग भूल गए।

            वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा

पाकिस्तान के पास अमेरिका से मिली उस वक्त के सबसे ताकतवर "पैटन टैंक” का ज़ख़ीरा था जिसे "लोहे का शैतान" भी कहा जाता था। इन पैटन टैंकों पर पाकिस्तान को बहुत नाज़ था। 

पाकिस्तान ने उन्हीं टैंको के साथ भारत पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया। उधर पकिस्तान के पास अमेरिकन पैटन टैंकों का ज़खीरा था, इधर भारतीय सैनिकों के पास उन तोपों से मुकाबला करने के लिए कोई बड़े हथियार ना होकर बस थ्री नाट थ्री की रायफल थी।

पाकिस्तान सेना पंजाब को जीतने के लिए आगे बढ़ रही थी और पंजाब के तरनतारन जिले के खेमकरण सेक्टर में असल उत्तर गांव तक पहुंच गई। भारत की सेना पीछे हटने लगी तभी सामने आ गये अब्दुल हमीद जिनके पास अमेरिकन पैटन टैंकों के सामने खिलौने सी लगने वाली 106 एमएम रिकॉइललेस राइफल वाली गन माउंटेड जीप थी।

जीप पर सवार दुश्‍मनों से मुकाबला करते हुए अब्दुल हमीद ने पैटन टैंकों के उन कमजोर हिस्सों पर अपनी बंदूक से इतना सटीक निशाना लगाया कि लौहरूपी दैत्य पैटन टैंक धवस्त होने लगे। और अब्दुल हमीद ने एक-एक कर पाकिस्तान के घमंड पैटन टैंकों को नष्ट करना शुरू कर दिया।

अब्दुल हमीद को देखकर भारतीय सैनिकों में और जोश बढ़ गया और वे पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने में लग गये। अब्दुल हमीद ने एक के बाद एक कर दो दिन में सात पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया।

पंजाब का असल उताड़ गाँव पाकिस्तानी टैंकों की कब्रगाह में बदलता चला गया। पाकिस्तानी सैनिक अपनी जान बचा कर भागने लगे, लेकिन वीर हमीद मौत बन कर उनके पीछे लगे थे और भागते हुए सैनिकों का पीछा जीप से करते हुए उन्हें मौत की नींद सुला रहे थे। 

वीर अब्दुल हमीद भी मुसलमान थे पाकिस्तानी भी मुसलमान थे।

तभी अचानक एक गोला अब्दुल हमीद की जीप पर आ गिरा जिससे वह चिथड़े-चिथड़े होकर 9 सितम्बर, 1965 को शहीद हो गए। इसकी आधिकारिक घोषणा 10 सितम्बर, 1965 को की गयी जब पाकिस्तानी सेना पंजाब से खदेड़ दी गई।

वीर अब्दुल हमीद का शव इतना क्षत-विक्षत था कि वहीं पंजाब के तरनतारन जिले के खेमकरण सेक्टर में असल उत्तर गांव में उन्हें दफ़न कर दिया गया।

वीर अब्दुल हमीद ना होते तो आज पूरा पंजाब पाकिस्तान में होता, अमृतसर भी , लुधियाना भी और स्वर्ण मंदिर भी।

इसके बाद की कहानी और रोचक है , उनकी पत्नी रसूलन बीवी ज़िन्दगी भर सरकारों को मदद के लिए चिट्ठी पर चिठ्ठी लिखती रहीं मगर उन्हें बुला कर सिर्फ फोटो सेशन कराया गया। नरेंद्र मोदी ने भी वही किया।

वीर अब्दुल हमीद की बेटी नजबुन अपने पति शेख अलाउद्दीन जो डिस्ट्रिक्ट रूरल डेवलपमेंट एजेंसी (डीआरडीए) में क्लर्क की पोस्ट पर से 28 फरवरी 2014 को रिटायर हुए थे बकाए रकम की पेमेंट के लिए सरकारी दफ्तर और अधिकारियों की दौड़ लगा-लगाकर थकती रहीं और तमाम वक्त बीतने के बावजूद शेख अलाउद्दीन के एश्‍योर करि‍यर प्रमोशन , लीव एनकैशमेंट और छठे वेतन आयोग के मुताबिक एरियर और ग्रेच्युटी का पेमेंट सालों तक नहीं हो सका। कहीं भी उनकी सुनवाई नहीं हुई। रकम नहीं मिलने से परिवार भुखमरी के कगार पर रहा।

वीर अब्दुल हमीद के बेटे अली हसन ने कानपुर के हैलट अस्पताल में आक्सीजन ना मिलने से तड़प तड़प कर दम तोड़ दिया। अस्पताल वालों को वीर अब्दुल हमीद के बारे में कुछ नहीं पता जिससे अली हसन को कुछ मदद कराई जा सके।

और वीर अब्दुल हमीद के गांव में उनके नाम से बने स्कूल का नाम बदल दिया गया। जो सोशल मीडिया पर भारी विरोध के कारण पुनः ऊनके नाम से रखा गया।

वतन पर मरने वाले का यही बाकी निशां होगा....

देश के लिए शहीद होने वाले वीर अब्दुल हमीद को खिराज ए अक़ीदत, अल्लाह उन्हें मगफिरत अता फरमाए....

साभार 

मोहम्मद जाहिद ✍️