विचार बिंदु : आज महाष्टमी यानी आत्म-समीक्षा महोत्सव है..

विचार  बिंदु : आज महाष्टमी यानी आत्म-समीक्षा महोत्सव है..

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय

         अनेक मित्र और परिचित हैं जो यह समझते हैं मैं नास्तिक हूँ। पर,हकीकत में ऐसा नहीं है।मेरा शक्ति सम्प्रदाय और उसमें भी महात्रिपुर सुन्दरी की उपासना परंपरा से गहरा संबंध है।मथुरा में जन्म लेने के कारण वैष्णव परंपरा के उदार मूल्यों का जीवन पर गहरा असर रहा है। अनेक मित्र हैं जो यह मानते हैं मैं मार्क्सवादी हूँ। यह भी सच नहीं है।लेकिन यह सच है मार्क्सवाद को मैं मन लगाकर पढ़ता हूँ और अनेक क्षेत्रों में उसका व्यवहार में आचरण भी करता हूँ।लेकिन मैं मूलतः नागरिक के नाते लिखता-पढ़ता-बोलता हूँ। 

        मुझे पांडित्य से नफ़रत है।उसके तमाम क़िस्म के आडंबरों से नफ़रत है।संस्कृत साहित्य का छात्र रहने के कारण सहृदयता और सरसता का पाठ मैंने संस्कृत की परंपरा से ग्रहण किया है और तंत्र में बाला-भुवनेश्वरी मंत्र से दीक्षित होने और महात्रिपुर सुंदरी की परंपरा से जुड़ने के कारण मैं धर्मशास्त्र-मनुस्मृति और सनातन हिन्दू धर्म की अनेक कुप्रथाओं और कुविचारों का विरोधी हूँ।यह बात लिखने का एकमात्र कारण यह है कि आज दुर्गाष्टमी है।आज शक्ति की उपासना का दिन है।स्वयं को नए सिरे से देखने और पाने का दिन है। 

            हम दुर्गाष्टमी का पूजन क्यों करते हैं ? स्वयं से साक्षात्कार करने के लिए । स्वयं के कामों की समीक्षा के लिए।धर्म और पूजन तो बहाना है।लक्ष्य है जीवन।बहाना है धर्म।मुश्किल यह है कि हमने जीवन ,उसकी चुनौतियों और सामाजिक यथार्थ के सवालों को गौण बना दिया और धार्मिक आयोजनों -आडंबरों को प्रमुख बना दिया है। यही हमारे समाज के निष्क्रिय भावबोध का यह बुनियादी कारण है। 

          नवरात्रि आती है तो अधिकांश लोग देवी मंदिर में दर्शन करने जाते हैं ,पूजा करते हैं। लेकिन स्वयं को नहीं देखते, समाज को नहीं देखते।शक्ति की उपासना का अर्थ है स्वयं की समीक्षा का पर्व। शक्ति की उपासना के अधिकांश श्लोक जो विभिन्न ग्रंथों में मिलते हैं।इनमें दुर्गा सप्तशती से लेकर ललिता सहस्रनाम तक शामिल हैं। अन्य रचनाएँ भी हैं जो तान्त्रिकों के यहाँ उपयोग में लाए जाती हैं।

        शक्ति की उपासना का मूल लक्ष्य है स्त्री की संप्रभु सत्ता को मानना। स्वयं की इसके आधार पर समीक्षा करना,समाज की समीक्षा करना और सकारात्मक मूल्यों और बातों की खोज करना, आत्मालोचना करना और उसे आचरण में लागू करना।  

       दुर्गा सप्तशती या अन्य देवी स्तुतियों का अनेक शिक्षित लोग पाठ करते हैं, व्रत करते हैं ,आज के दिन हलुआ,पूड़ी,चना,सब्जी का देवी पर प्रसाद चढ़ाते हैं।यह काम अब धार्मिकता के साथ अधिक होता है।इसमें उपभोक्तावाद दाखिल हो गया है तो उसने भोजनालयों में नवरात्रि स्पेशल भोजन के आइटम भी बाज़ार में उतार दिए हैं।उपभोग और पूजा के उत्सव के रुप में धार्मिक पर्व और उत्सवों का रुपान्तरण आधुनिक काल की सबसे महान धार्मिक त्रासदी है।

               नवरात्रि में शक्ति के उपासक आत्म-समीक्षा के ज़रिए नई संभावनाओं और नए शक्ति स्रोतों की खोज करते हैं।दुर्गा सप्तशती का पाठ मूलतः स्त्री संदर्भ में आत्म समीक्षा और पॉज़िटिव शक्ति सृजन की खोज का पाठ है, लेकिन सनातनियों के असर के कारण यह पाठ अब सिर्फ़ पूजा के इस्तेमाल में आने वाले मंत्रों का पाठ मात्र होकर रह गया है। लेकिन मेरे जैसे लोगों के लिए यह पाठ सिर्फ़ पाठ मात्र नहीं है बल्कि पुनर्सृजन के रुपों की खोज का एक अभ्यास है।हम किन चीजों को प्राथमिकता के साथ देखें ? समाज में ,देव समाज में कौन मुख्य है ? इसे हरेक नवरात्रि में बार-बार स्मरण करें। इस भावबोध को ध्यान में रखकर शक्ति के पाठ के रुप में दुर्गा सप्तशती नामक ग्रंथ लिखा गया।

                समाज,जीवन और देव समाज में स्त्री प्रमुख है, ऐसी स्त्री प्रमुख है जिसका कोई पुरुष संदर्भ नहीं है।स्त्री को स्त्री संदर्भ से देखो।स्त्री को सकारात्मक रुप में देखो। यह मूल धारणा दुर्गा सप्तशती के मंत्रों में चित्रित है।देवी के जिन नौ रुपों की नवरात्रि के रुप में आरंभ में ही चर्चा है, वह मंत्र स्वयं में बहुत कुछ संदेश देते हैं।लेकिन भारतीय समाज की मुसीबत यह है कि यहाँ प्रत्येक संदेश ,पूजा की वस्तु बना दिया जाता है।उसका प्रधान कारण है समाज में पितृसत्ता की विचारधारा का असर। दिलचस्प है कि पितृसत्ता को चुनौती एकमात्र शक्ति सम्प्रदाय देता है। उसके विभिन्न देवी रुपों के नाम पर लिखे गए स्तोत्र-सहस्रनाम देते हैं।इनमें सबसे जनप्रिय है दुर्गा सप्तशती नामक ग्रंथ। दुर्गा सप्तशती का एक ही संदेश है स्त्री मूल सर्जक है और वह पुरुष की सत्ता से स्वतंत्र है।पुरुष के संदर्भ से स्वतंत्र है।यह बुनियादी बात यदि हम मान लें और स्त्री की सकारात्मक चीजों पर गौर करें तो अनेक सामाजिक व्याधियों से मुक्ति मिल सकती है।दुर्गा सप्तशती स्त्री के कामुक रुप का निषेध है।स्त्री कामुकता का निषेध है।स्त्री कामुकता के जिस रुप को वात्स्यायन ने कामसूत्र के ज़रिए प्रतिष्ठित किया और स्त्री को उपभोग की वस्तु और पुरुष संदर्भ के साथ जोड़कर पेश किया, उस पूरे नज़रिए का शक्ति सम्प्रदाय,महात्रिपुर सुंदरी, देवी के उपासक विरोध करते रहे हैं। उनके लिए स्त्री, कामुकता का नहीं शक्ति (पावर)का स्रोत है।यही वजह है कन्या पूजन आज के दिन की विशेषता है।

           आओ शक्ति की उपासना के बहाने स्त्री के बारे में अपने नज़रिए को बदलें।स्त्री को पुरुष संदर्भ में देखना बंद करें।स्त्री को स्त्री के रुप में देखने, व्यक्ति के रुप में देखने की परंपरा सबसे पहले शक्ति सम्प्रदाय ने आरंभ की।स्त्री की स्वायत्त सत्ता और महत्ता को मानें और समाज और स्त्री को देखने के पुंसवादी नज़रिए से अपने को मुक्त करें। यही दुर्गा सप्तशती का संदेश है।

साभार 

जगदीशर चतुर्वेदी✍️