ऊंच - नीच और भेदभाव रहित मानव मूल्यों के प्रबल पक्षधर थे संत शिरोमणि रविदास - प्रेम शंकर पाण्डेय

ऊंच - नीच और भेदभाव रहित मानव मूल्यों के प्रबल पक्षधर थे संत शिरोमणि रविदास - प्रेम शंकर पाण्डेय
       

संत रविदास जयंती  ( २४ फरवरी  ) पर विशेष

*************************************

 सभी वर्गों व जातियों के कल्याण के लिए समान रुप से समर्पित - संकल्पित थे वाराणसी में जन्मे महानतम विभूति संत शिरोमणि रविदास

************************************

मध्ययुग में  जिन महापुरुषों ने अपने तप,त्याग और पुरुषार्थ से समूची मानवता को उपकृत किया उनमें संत रविदास का नाम अग्रगण्य है | संत , दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक  रविदास जिन्हें रैदास, रुइदास,रेदास,रौदास तथा रायादास आदि नामों से भी जाना जाता है का जन्म 1376 ईस्वी में माघ पूर्णिमा के दिन   वाराणसी (उतर प्रदेश ) के सीरगोवर्धन नामक स्थान पर हुआ था | उनकी माता का नाम श्रीमती कर्मा देवी  ( कलसा देवी) तथा पिता का नाम संतोख दास था |  चर्मकार जाति से संबंधित होने के कारण जूते बनाना इनका पुश्तैनी व्यवसाय था | इनका जन्म ऐसे समय में हुआ जब उत्तर भारत में विदेशी आक्रांताओं का शासन था  तथा चहुॅंओर गरीबी,अशिक्षा,जुर्म  भ्रष्टाचार,जातिवाद और छुआछूत   का बोलबाला था | एक मान्यता के अनुसार संत रविदास वैष्णव भक्तिधारा के महान संत स्वामी रामनंदाचार्य के शिष्य और संत कबीर के गुरुभाई थे तो कृष्णभक्ति शाखा की महान कवयित्री मीराबाई और चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी का नाम उनकी शिष्याओं में शामिल है |

 संत रविदास समाज में सर्वत्र व्याप्त ऊॅंच - नीच की भावना के धुर  विरोधी व पंथिक,जातीय  तथा सामाजिक - सह - अस्तित्व के प्रबल पैरोकार थे | उन्होंने जातीय श्रेष्ठता - नीचता पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा, रैदास करम के कारने होत न कोई नीच | नर को नीच कर डारि है ओछे करम की नीच || एक किंवदंती के अनुसार शासक वर्ग से संबंधित  एक प्रभावशाली मुस्लिम मतावलंबी ' सदना पीर ' ने उन्हें इस्लाम धर्म में दीक्षित होने का प्रलोभन दिया जिसे उन्होंने यह कह कर ठुकरा दिया कि ईश्वर एक है और  दुनिया के सभी  धर्मों व पंथों का मूल भी एक ही है | उन्होंने मानवतावाद पर  जोर देते हुए धर्म को अपरिवर्तनीय बताया | भेदभाव रहित अखण्ड मानवता के प्रति समर्पित इस महान संत का  सन् 1540 ईस्वी में वाराणसी में देहावसान हो गया | उनकी जयंती पर भारत व  विश्व के अन्य देशों में रहने वाले उनके अनुयायी   सीरगोवर्धन ( वाराणसी ) स्थित उनकी भव्य समाधि पर एकत्रित होकर उन्हें अपने श्रद्धा - सुमन अर्पित करते हैं व उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं  तो दूसरी ओर उत्तर भारत के प्रायः सभी नगरों व गाँवों में इस अवसर पर भव्य आयोजन किए जाते हैं | दुर्भाग्यवश मानव मात्र के कल्याण के प्रति समर्पित - संकल्पित इस वैश्विक विभूति  की जयंती अभी भी काफी हद तक वर्गगत  दायरे में ही  सिमटी हुई है | काश! उनके अवतरण दिवस ( जयंती) पर हम इन संकीर्ण सीमाओं  से मुक्त होने का संकल्प ले पाते?

    प्रेम शंकर पाण्डेय, ग्रामीण पत्रकार

      क्षेत्र पाली, कासिमाबाद गाजीपुर

सामाजिक कार्यकर्ता ग्रामीण विकास संस्थान हथिनी

What's Your Reaction?

like
0
dislike
0
love
0
funny
0
angry
0
sad
0
wow
0