पुत्र की दीर्घायु तथा सुख-समृद्धि के लिए माताएं रखेंगी निर्जल जीवित्पुत्रिका व्रत

रिपोर्ट- प्रेम शंकर पाण्डेय ✍️
जीवित्पुत्रिका व्रत(जिउतिया) आश्विन मास में कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है। जो इस वर्ष 10सितंबर को पड़ रहा है।इस व्रत का विशेष वर्णन *भविष्य पुराण* में मिलता हैं।इस पर्व में माताएं अपने पुत्र के चिरंजीवी होने की मंगलमय कामना करती है।अक्सर लोगों को कहते सुना भी जाता है कि_ *खैर मनाओ की तुम्हारी मां जिउतिया की थी,हो तुम बच गए* इस व्रत में पुत्रवती महिलाएं निर्जल व्रत रहती हैं। सोने या चांदी की बनी जिउतिया की पूजा के बाद उसे धारण करती हैं। इस व्रत की पूर्व संध्या पर लौकी-भात तथा हरी सब्जी में सत्पुतिया खाया जाता है। व्रती महिलाएं दिनभर पूजा-पाठ कर जिउतिया की कथा का श्रवण करती हैं। सामान्यत: यह पर्व तीन दिनों का होता है_एक दिन नहाय खाय यानी सप्तमी को माताएं स्नान कर खाना खाती हैं,अष्टमी को उपवास रखकर शाम को पूजा करती है।नवमी को सुबह में उपवास तोड़कर 'पारण' कर लेती है।इस बार नवमी तिथि 11सितंबर को है। जिउतिया में जीमूतवाहन भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है। इस पर्व के मद्देनजर शहर तथा ग्रामीण इलाकों की बाजारों में एक दिन पूर्व मंगलवार को सुबह से लेकर देर शाम तक खरीददारों की चहल-पहल बनी रही। बाजारों में लौकी, सत्पुतिया के साथ ही पूजा सामग्री की दुकानों पर खरीददार पहुंचते रहे।