गीता जयंती विशेष: मोह के कारण होता है दु:ख

रिपोर्ट- त्रिपाठी एम बलिराम ✍️
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मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था। कौरव और पांडवों की सेना के मध्य युद्व शुरु होने का पहला दिन था, अर्जुन ने श्रीकृष्ण से निवेदन किया ~ हे केशव ! मुझे दोनों सेनाओं के मध्य ले चलिये। मै देखना चाहता हूं, कौरवो का मनोरथ पूरा करने के लिए कौन कौन से लोग हण लोगों के विरुद्ध खड़े हैंं। उन रिश्तेदारों और कुटुंबी जनों को भी देखना चाहता हूं,जो धर्म पर आरुढ़ हम समस्त भाईयों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रस्तुत हैं । हर देश गांव शहर का यही किस्सा... अपने सामने लड़ने को खड़े होते है़,गांव मोहल्ला वाले और उनकी मदद करनेवाले । पहले छिप कर वार करते हैं, फिर आमने सामने खड़ा होजाते हैं। हर जगह शकुनी मामा जैसे लोग एक पक्ष की तरफ हितैषी बन कर आ खड़े होते हैं और भाई भाई के बीच युद्ध करा कर ही चैन लेते हैं । व्यक्ति अपने पर छिप कर वार करने वाले सगे संबंधियों और गांव जवार कै लोगो को देखता है ,तो निराश होता है। अरे यह भी मेरे खिलाफ?? अरे नाना, मामा ,ताऊ बाबा सब आगए लड़ने ... अच्छा हुआ कल तक जो मेरे हितैषी बनते थे ,वे सब आज खुल कर सामने आगए? तब हृदय को धक्का लगता है और अपने समाज पर से विश्वास उठ जाता है। अर्जुन ने देखा जिस भीष्मपितामह ने पाल पोस कर बड़ा किया, पढ़ाया -लिखाया । जिस गुरु जी ने अस्त्र शस्त्र सिखाया सब मेरे खिलाफ युद्ध करने के लिए खड़े हैं । जिन भाईयो के साथ पढ़ लिख कर बड़े हुए.. खेला कूदा, सब लड़ने आये हैं । उसे पीड़ा भी हुई और आश्चर्य भी.. हम सब तो पीड़ित थे... धर्म पर थे ,फिर यह कैसी प्रतिकूल परिस्थिति ? हे भगवान! ... उसकी आंखों में आंसू आगए । श्रीकृष्ण ने देखा ...इतना बड़ा धनुर्धर निराश होकर कांपता हुआ ... रथ के पिछले भाग मे बैठ गया। नहीं लड़ूंगा केशव ! अपनो से लड़ने से अच्छा है साधु संन्यासी बन जाऊं । जीत कर क्या करुंगा? क्षणिक भोगों के लिऐ, थोड़ी सी जमीन के लिए मार काट?? रक्त पात करू़?? कहाता है, भला क्या हमारे साथ मरने के बाद जाना है?? सारा राज पाट तो यही रह जाना है। श्री कृष्ण समझ गए.. यह वैराग्य नही़ इसकी आसक्ति इसे व्यथित किए है । लेकिन यह तो जिम्मेदारी से पलायन है। विद्याध्ययन और धन संपदा के लिए अपने को अजर अमर समझना चाहिए। धर्म के लिए संसार को श्रणभंगुर जान कर जल्द से जल्द दान पुण्य तीर्थाटन आदि कर लेना चाहिए ,ऐसा शास्त्र क ता है । अर्जुन वीर योद्धा है,इसका युद्ध से पलायन अपनी जिम्मेदारी से भागना हुआ। यह ज्ञान की बाते नही़ आसक्ति के कारण मूढ़ो जैसी भाषा बोल रहा है। तब उन्होंने गीता का उपदेश दिया । बताया संसार का सत्य क्या है? धर्म क्या है? केसे इंसान को जीना चाहिए .. उसका खान- पान और रहन -सहन क्या होना चाहिए ?? यह बताया । श्री कृष्ण जी ने... अर्जुन की विवेक शक्ति जगाई। ताकि उसके मन का अंधेरा दूर हो। पैंतालिस मिनट के इस संवाद को अर्जुन, वेदव्यास जी,संजय और संजय के माध्यम से धृतराष्ट्र ने सुना। पर धृतराष्ट्र का मन गीता मे नही़ लगा, वह नही़ सुन सका ।उसे तो लड़ाई मे हार जीत सुनने मे रुचि थी । इसलिए न तो धृतराष्ट्र सुन सके और न अन्य कोई।