वेलेंटाइन डे : इतिहास के आइने में..

वेलेंटाइन डे : इतिहास के आइने में..

रिपोर्ट- प्रेम शंकर पाण्डेय

 वर्तमान में १४ फरवरी अर्थात वैलेन्टाइन डे का ज्वर विश्व के अनेक क्षेत्रों से होते हुए अब बहुत से भारतीय युवाओं के सिर चढ़कर बोलने लगा है और कहीं_कहीं तो ये दिवस उन युवाओं के लिए अपने धार्मिक व राष्ट्रीय पर्व से अधिक महत्व रखने लगा है किन्तु विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि अधिकांश युवाओं को वैलेन्टाइन डे के सम्बन्ध में सही और स्पष्ट जानकारी नहीं है, केवल उन्हें ही इस संदर्भ में सटीक जानकारी किसी को भी नहीं है।

     इतिहास में तीन संत वैलेन्टाइन के नाम मिलते हैं और संयोग से तीनों की मृत्यु १४ फरवरी को ही हुई है।कहा जाता है कि रोम में एक क्लाडियस नाम का राजा था जिसे अपने साम्राज्य विस्तार की सनक सवार थी अतः वह अपनी सेना के साथ शत्रुओं से युद्ध के लिए निकला परन्तु उसे निरंतर पराजय का सामना करना पड़ा। ज्ञात करने पर पता चला कि सेना के युवाओं का अपनी प्रेमिकाओं से सम्बन्ध हैं जिसके कारण वह पूरी शक्ति और तन्मयता से युद्ध नहीं लड़ पा रहे हैं तब राजा क्लाडियस ने आदेश दिया कि कोई भी पादरी सेना के युवाओं का विवाह न कराए किन्तु एक पादरी ने आदेश का उल्लंघन किया,जिसका नाम वैलेन्टाइन था जो गोपनीय ढंग से सेना के युवाओं का विवाह उनकी प्रेमिकाओं से करा देता था। जब राजा को इस बात की भनक लगी तो बड़ा क्रोधित हुआ और पादरी को कारागार में डाल दिया,इसी बीच कारागार में जेलर की बेटी से उसे प्रेम हो गया और जेलर व उसकी बेटी ने वैलेन्टाइन के कहने में आकर इसाई धर्म स्वीकार कर लिया।जब इस घटना का समाचार राजा को मिला तो उसने पादरी को ये सन्देश भेजा कि अगर वह रोमी धर्म स्वीकार कर ले तो उसे छोड़ दिया जायेगा किन्तु वैलेन्टाइन ने इसे अस्वीकार कर दिया,अतः १४ फरवरी को उसे फांसी दे दी गयी। ईसाइयों ने उस पादरी के बलिदान के मद्देनजर उसे संत की उपाधि दी और १४ फरवरी का नाम वैलेन्टाइन डे रख कर बतौर जश्न मनाने लगे। 

  इसी प्रकार एक और वैलेन्टाइन नाम का व्यक्ति था जो ऐन्टरऐमा का बिशप था और २७० ए०डी० में रोम में मारा गया। तीसरे वैलेन्टाइन के सम्बन्ध में इतना ही ज्ञात हो सका कि वह अफ्रीकियों में धर्म प्रचार करते समय मारा गया।

   पोप जैलासिक ने ४६६ ए०डी० में इन तीनों की मृत्यु तिथि १४ फरवरी को बलिदान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। दिलचस्प बात ये है कि १६६१ में रोमन कैथोलिक कैलेन्डर से १४ फरवरी को सेन्ट वैलेन्टाइन डे के रूप में हटा दिया गया था। वास्तव में देखा जाये तो वैलेन्टाइन कार्ड या उपहार भेजने की प्रथा ईसाई धर्म से प्राचीन और रोम की प्राचीन संस्कृति से जुड़ी है। रोम की स्थापना दो भाइयों रोमुलस और रेमस ने की थी। बचपन में इनको भेड़ियों ने एक गुफा में पाला था,वह गुफा आगे चलकर लुपरकल कहलाई। गुफा जिस पहाड़ी पर थी वह रोमन साम्राज्य का केन्द्र बनी। यहां के पुजारी जिन्हें लुपरकाई कहा जाता था, बकरी की खाल ओढ़ कर एक चाबुक से रोमन स्त्रियों को स्पर्श करते थे जिससे लोगों में संतान वृद्धि का अंधविश्वास था। रोमन भाषा में कोड़ो को फेब्रुआ कहते हैं,आगे चलकर इसी फेब्रुआ शब्द से फेब्रुअरी महीने का नाम पड़ा।

  कुछ लोगों के अनुसार इस दिन का सम्बन्ध रोमवासियों के त्योहार ल्योपरकेलिया से है।उस दिन रोमवासी अपने देवता-योनो की याद में जश्न मनाते थे और वहां मौजूद लड़कियां अपने नामों को शीशे के एक बर्तन में डाल देती थीं। उस बर्तन के पास मुहल्ले के सभी युवा लड़के जमा होते और लाटरी के अन्दाज में वह नाम निकालते जिसके हाथ जो नाम लगता उसी के साथ जश्न मनाता था। इस प्रथा को मनाने की शुरूआत का स्पष्ट ज्ञान नहीं हो सका है।

नजमुस्साक़िब अब्बासी नदवी 

           गाज़ीपुर