कवियित्री वी.एम.वृष्टि की कविता_क्या जाता प्रिय?यदि एक बार , मनुहार तुम्ही कर लेते

कवियित्री वी.एम.वृष्टि की कविता_क्या जाता प्रिय?यदि एक बार , मनुहार तुम्ही कर लेते

रिपोर्ट_प्रेम शंकर पाण्डेय ✍️

जब अनबन हुई हमारी , स्वाभिमान नित छोड़ा मैंने

सुलह किया,मतभेद मिटाया, नेह पुराना जोड़ा मैंने ।।

अबकी मैं ही रूठ गयी जब , भीतर - भीतर टूट गयी जब ,

आकर ,गले लगाकर मुझको; प्यार तुम्हीं यदि कर लेते !

क्या जाता प्रिय?

एक बार , मनुहार तुम्हीं यदि कर लेते !!

एक बार स्मरण तो करते , मेरे प्रेमिल अभिसारों का ।

रहे समर्पित जो बस तुमको , मेरे सारे शृंगारों का ।।

सीने में मृदुभाव उमड़ते , मैंने होंठ सिले हैं प्रियवर ।

नेह - नगीने इन आँखों के , टांक रही अब तक तकिये पर ।।

छोटा - सा , अपराध हुआ ; स्वीकार तुम्हीं यदि कर लेते ! क्या जाता................... !!

हो प्रेम-सरोवर तुम , लेकिन जल हुआ सागरों-सा खारा ।

मुरझाई नलिनी क्यों जल में ? तुमसे जग पूछ रहा सारा ।।

अमृत का पान किया मैंने , पी लूँगी आज हलाहल भी ।

लो सम्मुख बैठी हूँ आकर , नयनों में नदिया कल-कल भी।।

भ्रम, संशय के भवसागर को ; पार तुम्हीं यदि कर लेते ! क्या जाता................... !!

साजन! मेरा धूमिल मुखड़ा , तुम अपने हाथों में लेकर ।

इस मौन हृदय के भावों को , विन्यास अक्षरों का, देकर ।।

कहना है जो,कह दो साथी , लड़ना चाहो तो लड़ भी लो ।

सब बैर भुलाकर , माथे पर - निर्मल-सा चुम्बन जड़ भी दो ।।

एक बार हँसकर , मुझपर ; अधिकार तुम्हीं यदि कर लेते !

क्या जाता.................... !!

वी०एम०"वृष्टि"✍️