महंगाई से आस्था भी प्रभावित - अजीत पाण्डेय

महंगाई से आस्था भी प्रभावित - अजीत पाण्डेय

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय 

नाग पंचमी सावन माह में अमावस्या के बाद पांचवें दिन मनाया जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है।भारत धार्मिक आस्था और विश्वासों का देश है। इस लिये यह दिन नागों को समर्पित है।नागपंचमी के दिन नागों को बचाने का संकल्प लिया जाता है।नागपंचमी का पर्व सनातनी लोगों की भावनाओं से भी जुड़ा है,ये पर्व हमें प्रकृति से जुड़ाव और संतुलन का भी संदेश देता हैं।लेकिन महंगाई और घरपरिवार चलाने की जदोजहद में इस पर्व पर लोगों का उत्साह कम होता जा रहा है जो धर्म संस्कृति के लिए खतरा ही है।

 बुजुर्गों का कहना है कि अषाढ़ माह से बरसात शुरू हो जाती है। सावन माह आते आते ताल, तलैया, पोखरे, गुफाएँ सब बरसात होने से लबालब भर जाते हैं।इसीलिए नाग अपने पुराने घरों को छोड़कर नए घरों की तलाश में निकल पड़ते हैं। जिससे धरती के अन्य जीवों को खतरा रहता है।खतरे से बचने के लिए लोग नाग और देवाधिदेव महादेव से श्रद्धा भाव से पूजा,प्रसाद चढ़ा कर अपने और अपने परिवार की रक्षा की कामना करते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो लोग नागपंचमी के दिन नागों की पूजा करते है उन्हें नागों के भय से और राहु-केतु के दुष्प्रभाव से भी मुक्ति मिलती है।

प्राचीन शास्त्रों के अनुसार, कई लोग सांप या नाग को अपने कुला देवता के रूप में भी मानते हैं। नाग को भगवान शिव का आभूषण भी कहा जाता है। भारत के प्राचीन शास्त्रों में उल्लेख है कि भगवान विष्णु का शेषनाग पृथ्वी का भार अपने सिर पर रखे हुए हैं। नाग पाताल लोक में शासन करते और रहते हैं। 

नाग वंश में कुल बारह प्रसिद्ध नाग हैं (अनंत, वासुकी, शेषनाग, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र और तक्षक)। देवी मनसा सभी नागों की माता हैं। वह वासुकि की बहन है।नागों को शक्ति और सूर्य का अवतार भी माना जाता है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब तक्षक नाग ने राजा परीक्षित को डस लिया, तो उनके पुत्र जन्मेजय ने नागों से बदला लेने और उनके पूरे वंश को मारने के लिए नाग यज्ञ शुरू किया।नागों की रक्षा के लिए ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने इस यज्ञ को रोक दिया। जिस दिन उन्होंने यज्ञ रोका उस दिन को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार,नाग पंचमी के दिन नाग की प्रजाति का जन्म हुआ था। जनमेजय अपने पिता महाराजा परीक्षित को तक्षक सर्प के काटने से नहीं बचा सके। उसने अपने दायित्व के माध्यम से तक्षक को उसके सामने पश्चाताप करने के लिए मजबूर किया। ऐसा कहा जाता है कि जो सावन माह की पंचमी को देवाधिदेव महादेव और नाग की पूजा करता है उसे नाग-दोष से मुक्ति मिलती है।

पकवानों संग शारिरिक दक्षता का यह पर्व भी महंगाई और समयाभाव के कारण अब लुप्तप्राय होता जा रहा है।इस पर्व पर घर मे नाग देवता का नाम लेकर दूध, लावा का प्रसाद चढ़ाने के बाद अपने और परिवार की रक्षा की कामना करने के बाद गांवों कस्बों में खेल कूद प्रतियोगिता का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता रहा है।जो अब विलुप्त होता जा रहा है।

साभार 

अजीत पाण्डेय, गाजीपुर ✍️