कांच ही बांस के बहंगिया,बहगीं लचकत जाय..छठ गीत के साथ व्रती महिलाओं ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य

कांच ही बांस के बहंगिया,बहगीं लचकत जाय..छठ गीत के साथ व्रती महिलाओं ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य

रिपोर्ट- प्रेम शंकर पाण्डेय ✍️

पाली (गाजीपुर)।लोक आस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान नहाए -खाय ,खरना की पूजा के बाद वर्ती महिलाओं ने शुक्रवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। दिनकर की पूजा के रूप में विख्यात छठ पर्व प्राचीन परंपरा से हटकर सनातन धर्मावलंबियों का ऐसा महापर्व हो गया है जिसमें पंडित पुजारी की आवश्यकता नहीं होती स्त्री- पुरुष तन- मन -धन के सहयोग से स्वयं की सुचिता, स्वच्छता पर विशेष ध्यान देने के बाद पूजा- अर्चना करते हैं उगते सूरज को प्रणाम करने वाले संसार में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है दिन भर अपने तप्त तेज से पृथ्वी को आलोकित करने के बाद भगवान भास्कर जब स्वयं निस्तेज होकर ढल रहे होते हैं तो उस वक्त उन्हें प्रकृति के अन्य तत्वों के साथ मिलकर प्रणाम निवेदित करना हमारे कृतज्ञता का बड़ा सुंदर और जीवंत दृश्य है। जिसका जीता जागता उदाहरण शुक्रवार सायं छठ के दिन संध्या आराधना के साथ शाम को जल में खड़े होकर वर्ती महिलाओं द्वारा डूबते सूर्य से मंगलमय मनोरथ सुख- सौभाग्य के फल प्राप्ति करते करते हुए देखकर लगाया गया। ग्रामीण अंचल के गांव पाली सहित सुरवत, रामगढ़,अवराकोल, बढ़ईपुर,सिधागरघाट, मुहम्मदपुर कुसुम,टंड़वा,बहिरार,बेरूकही में व्रती महिलाओं ने घर से ही हाथ में कलश के साथ दीप प्रज्वलित कर रंग बिरंगी साड़ियों में सज-धज कर घर से बाहर छठ घाट के लिए निकल रही थी। पीछे- पीछे पुरुष वर्ग भी माथे पर फूल -फूल व्रत के लिए बनाए गए पूरी- ठेकुआ आदि पकवानों से भरे हुए दौरे को लेकर चल रहे थे तो एक ओर बालकों का समूह कंधे पर ईख को लेकर चल रहा था तो साथ में परिवार के अन्य सदस्य भी पीछे -पीछे चल रहा थे। महिलाएं गली- मोहल्ले से निकलते हुए कांच ही बांस के बहंगिया,बहगीं लचकत जाय…छठ गीत गाते हुए नदी, तालाब, पोखरा पर बने घाटों की ओर जा रही थी । विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर ध्यान मग्न होकर भगवान भास्कर को डूबते समय एक साथ सामूहिक रूप से अर्घ्य देने का मनोरम दृश्य मनोहारी लग रहा था ।