देव प्रबोधिनी एकादशी 25 को, समस्त मांगलिक कार्य होंगे प्रारंभ

रिपोर्ट-प्रेम शंकर पाण्डेय ✍️
कासिमाबाद( गाजीपुर ): कार्तिक माह की एकादशी तिथि की विशेष महिमा है।कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव प्रबोधिनी, हरि प्रबोधिनी, डिठवन या देवउठनी (देवोत्थान )एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक शुक्ल की एकादशी तिथि से कार्तिक पूर्णिमा तक शुद्ध देशी घी के दीपक जलाने से जीवन के सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है ।देवउठनी एकादशी का व्रत महिला और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से पुण्य फलदायी है ।अपने जीवन में मन- वचन -कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदाई रहता है ।भगवान श्री विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन क्षीरसागर में योग निद्रा हेतु प्रस्थान करते हैं ।चार मास पश्चात यानि कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु योग निद्रा से जागृत होते हैं ।भगवान श्री विष्णु के जागृत होते ही समस्त मांगलिक शुभ कार्य शुभ मुहूर्त में प्रारंभ हो जाते हैं ।इस बार यह पर्व 25 नवंबर बुधवार को मनाया जाएगा । ज्योतिषाचार्य मां चण्डिका धाम बहादुरगंज के मुख्य पुजारी राहुल बाबा ने बताया कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 24 नवंबर कोअर्द्दरात्रि के पश्चात 2:00 बजकर 43 मिनट पर लगेगी जोकि अगले दिन 25 नवंबर को अर्द्धरात्रिके पश्चात 5:11 बजे तक रहेगी ।हरि प्रबोधिनी एकादशी का व्रत 25 नवंबर बुधवार को रखा जाएगा ।इस दिन व्रत उपवास रखकर भगवान श्री विष्णु जी की विशेष पूजा अर्चना करने का विधान है। व्रतकर्ता को प्रातः काल समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर अपने आराध्य देवी- देवता की पूजा अर्चना के पश्चात देव प्रबोधिनी एकादशी के व्रत एवं भगवान श्री विष्णु जी की पूजा -अर्चना का संकल्प लेना चाहिए ।आज ही के दिन चातुर्मास्य का व्रत यम, नियम,संयम की समाप्ति हो जाएगी ।स्मार्त व वैष्णव जन व्रत रखकर भगवान श्री विष्णु जी की आराधना करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं ।देवउठनी एकादशी से भीष्म पंचक व्रत भी रखा जाता है। भीष्मपितामह ने एकादशी से पूर्णिमा तक पाण्डवों को उपदेश दिया था। उपदेश की समाप्ति पर भगवान श्री कृष्ण ने भीष्म पंचक व्रत की मान्यता स्थापित की थी ।तभी से इस व्रत का विधान चला आ रहा है । भगवान श्री हरि विष्णु जी की विशेष कृपा से जीवन के समस्त पापों का शमन होता है साथ ही जीवन में सुख- समृद्धि- आरोग्य व सौभाग्य बना रहता है। श्री विष्णु जी से संबंधित मंत्र 'ॐ श्रीविष्णवे नमः' का जप करना चाहिए।