रतनपुरा( मऊ):परंपरागत व्यवसाय के पुरोधा हैं राम अभिलाष गोस्वामी उर्फ हींग बाबा

रतनपुरा( मऊ):परंपरागत व्यवसाय के पुरोधा हैं राम  अभिलाष गोस्वामी उर्फ हींग बाबा

रिपोर्ट-(फतेह बहादुर गुप्त)✍️ 

रतनपुरा(मऊ)। पिता के परंपरागत व्यवसाय को अपनाने वाले राम अभिलाष गोस्वामी उर्फ हींग बाबा रतनपुरा कस्बा में पिछले 35 वर्षों से घूम घूम कर सिंदूर, हींग, रंग, सुरमा और चूर्ण बेचने का काम करते हैं ।यद्यकी हींग बाबा गोंडा जनपद के कर्नलगंज तहसील अंतर्गत बबुरास कस्बा के निवासी हैं। इनके पिता श्री भगवती प्रसाद गोस्वामी 40 वर्षों तक रतनपुरा में मूंगा ,माला इत्यादि घूम घूम कर बिक्री करते थे, और इसी व्यवसाय में कुछ और कड़ियां जोड़कर के हींग बाबा ने इसको बढ़ाते हुए अपने पुश्तैनी और परंपरागत व्यवसाय को जिंदा रखे हुए हैं। 26 मार्च 1968 को जन्मे राम अभिलाष गोस्वामी मात्र 17 वर्ष की अवस्था में अपने पिता के साथ पैदल ही घूम घूम कर इस व्यवसाय की बारीकियों को सीखा। वह मात्र छठी कक्षा तक ही पढ़ पाए। इसके बाद वह अपने पिता भगवती प्रसाद गोस्वामी के साथ इस कार्य में लग गए। शुरुआत में उन्हें पैदल ही गांव में पड़ता था। क्योंकि उनके पिताजी साइकिल से नहीं बल्कि पैदल ही चलते थे ।तो सीखने के लिए इन्होंने पैदल चलना ही मुनासिब समझा। इनके पिता जब थक गए,तो उन्होंने अपने घर का रास्ता अख्तियार किया। जबकि हींग बाबा इस व्यवसाय में पूरी तरह से पारंगत हो चुके थे ,और उन्होंने रतनपुरा में ही ₹200 की साइकिल आज से 20 वर्ष पूर्व खरीदी ,और उसी से वे घूम घूम कर अपना कारोबार करते हैं। प्रातः भोजन इत्यादि करके 10:00 बजे वे गांव में निकल जाते हैं, और बिक्री इत्यादि करके साय 6:00 बजे वापस आते हैं। स्वयं बनाना स्वयं खाना उनकी आदतों में शुमार है। हींग का कारोबार वे चैती के कगार पर भी करते हैं, जिसे ग्रामीणों को पसंद आता है ।उधार लेते हैं, और उसका भुगतान चैत्र में फसल के कटने के उपरांत करते हैं। यह उधारी उनके व्यवसाय को और आगे बढ़ाने में कारगर साबित हुआ। वे अपने गांव से 350 किलोमीटर की दूरी पर आकर के परदेश में अपना व्यवसाय कर रहे हैं। अपने संपर्क के स्रोतों का उन्होंने काफी विस्तार किया है ,और अपने माधुर्य व्यवहार, संस्कार और व्यवसायिक परिवेश को बढ़ाते हुए उन्होंने अपना कार्य का काफी विस्तार किए हुए हैं। ईश्वर में उनकी पूरी आस्था है। जिसकी वजह से अल्प शिक्षित होते हुए भी वह बेहतरीन भजन कीर्तन प्रस्तुत करते हैं। उनकी जिंदगी में भी काफी उतार-चढ़ाव आया है। वर्ष 2013 में वे सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे। एक बाइक सवार ने उनकी साइकिल को धक्का दे दिया था। जिसकी वजह से वे रतनपुरा स्थित भारतीय स्टेट बैंक की शाखा के सम्मुख घायल हो गए थे, जिसकी वजह से उन्हें डेढ़ माह तक बिस्तर पर स्वास्थ्य लाभ लेना पड़ा था ।उनकी संतानों में चार लड़कियां और एक लड़की है। उन्होंने तीन बच्चियों और इकलौते पुत्र की शादी कर चुके हैं। एक बच्ची रह गई है, जिसकी शादी करनी है। राम अभिलाष गोस्वामी उर्फ हींग बाबा का धार्मिक क्रियाकलापों में विशेष रूचि है ।वहीं दूसरी तरफ सामाजिक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना उनकी आदतों में शुमार है। आर्थिक स्रोतों को मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से उन्होंने काफी कठोर परिश्रम किया है, उन्होंने रोजी-रोटी को बेहतर बनाने की दिशा में मजदूरी से लेकर के नौकरी तक किया है। लेकिन उन्हें अपनापन अपने परंपरागत व्यवसाय में ही मिला ।जहां उन्हें खूब इज्जत मिलती है ।जहां भी जाते हैं, उनकी पहचान हींग बाबा के रूप में होती है। यही वजह है कि हींग बाबा अपने व्यवसाय के साथ साथ सत्संग और सामाजिक उत्थान के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर के हिस्सा लेते हैं। उनका मानना है कि सामाजिक बदलाव लाने के लिए लोगों में सामाजिक चेतना और जागरूकता लाना पड़ेगा ।तभी बदलाव संभव है। वर्ष 1994 में उन्होंने मानव उत्थान सेवा समिति हरिद्वार से दीक्षा प्राप्त किया, और इस संस्थान से दीक्षित होने के बाद उन्होंने संस्थान द्वारा संचालित गाजीपुर स्थित आश्रम में अपनी सेवाएं दी। यहां भी उन्हें काफी मानसिक सुकून प्राप्त हुआ। हींग बाबा का परिधान भी काफी आकर्षक लुक प्रदान करता है। जिसकी वजह से उन्हें सामाजिक मर्यादा बढ़ जाती है। गरीबी और आर्थिक स्रोतों की तंगी के बावजूद भी वे अपने परिधान पर विशेष ध्यान देते रहे हैं। वह सदैव धोती कुर्ता और कंधे पर गमछा उनकी अपनी विशिष्ट पहचान है। जिसमें वे कभी भी कोताही नहीं बरतते। हां यह अलग बात है कि जब उन्हें क्षेत्र में साइकिल से निकलना होता है तो उनके साइकिल के पिछले कैरियर पर बक्सा लदा होता है, और अपनी सुविधा के हिसाब से परिधान में थोड़ा सा समझौता करते हैं, बाकी सब वही रहता है ,धोती के स्थान पर वे पाजामा पहनते हैं। बाकी समय में उनका परिधान धोती कुर्ता और गमछा ही होता है। जिसमें उनकी आभा पूरी तरह से अभिमंडित होती है। राम अभिलाष गोस्वामी उर्फ हींग बाबा का मानना है कि प्राणियों में सद्भावना होनी चाहिए। उन्हें महापुरुषों के बताए रास्ते पर चलने की प्रेरणा मिलती रहनी चाहिए। सामाजिक परिवेश को देखते यह आभास हो रहा है कि आज पूरा मानव समाज अपने उद्देश्य भटक गया है ,और वह अंतर्मुखी हो चुका है। और व्यक्ति जब तक बहुर्मुखी नहीं होगा। तब तक समाज में उसकी अपनी सार्थक पहचान नहीं बन पाएगी, और सामाजिक बदलाव भी संभव नहीं हो पाएगा ।वह जब तक केवल अपने बारे में सोचेगा, तो उससे समाज का कल्याण नहीं होगा। उसे सभी के सुख दुख मैं सहभागी होना होगा। तभी समाज का कल्याण हो सकता है ।यही मानव सेवा धर्म हींग बाबा को काफी प्रभावित करता है ।यही वजह है कि जब भी कोई सत्संग का आयोजन होता है ,वे उसमें बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं ।इसमें उनकी विशेष दिलचस्पी भी है। उनका अपना एक सत्संग मंडल भी है ,जो रतनपुरा स्थित डाकघर के समीप पटेल जलपान गृह पर अपना भजन कीर्तन भी प्रस्तुत करते हैं। परंतु जब से लॉकडाउन लागू हुआ, तब से इस पर विराम लगा हुआ है। राम अभिलाष गोस्वामी उर्फ हिना बाबा का हींग बाबा सामाजिक संरचना के प्रति यह काफी संवेदनशील रहे हैं 100 सहयोगी स्वभाव उनका प्रारंभ से ही उनकी प्रवृत्ति रही है। सामाजिक मुद्दों पर वे काफी गंभीर रहे हैं। ग्राम वासियों के आग्रह पर वर्ष 2000 में वे अपने क्षेत्र पंचायत कुत्तुपुर से बीडीसी का चुनाव लड़ा। जिसकी खासियत यह रही कि उन्होंने जैसे ही क्षेत्र पंचायत का पर्चा दाखिल किया ।उनके गांव के दो अन्य प्रत्याशियों ने अपना नामांकन इनके समर्थन में वापस ले लिया । जिसकी वजह से हींग बाबा कुत्तुपुर निर्वाचन क्षेत्र से निर्विरोध बीडीसी निर्वाचित घोषित कर दिए गए। इन्होंने 5 वर्ष तक क्षेत्र पंचायत के लोगों को सेवा दिया। आज हींग बाबा रतनपुरा प्रखंड में खासे लब्ध प्रतिष्ठित हैं। साइकिल और उसके कैरियर पर लदा बक्सा, झोला शरीर पर चमचमाता धोती, कुर्ता ,गमछा उनकी एक विशिष्ट ब्रांड बन चुकी है। जिसकी वजह से वे पूरे क्षेत्र में सम्मान पाते हैं। अपने व्यवसाय के प्रति पूरी तरह से समर्पित हींग बाबा ग्रामीण क्षेत्रों से चक्रमण करने के उपरांत वे सायंकाल नित्य की भांति वे रतनपुरा डाक घर के बगल में अवस्थित पटेल जलपान गृह पर पधारते हैं, जहां पर वे चाय नाश्ता करने के उपरांत अपने शुभचिंतकों और शिष्यों से मिलते हैं। यह कृत्य उनके दैनिक दिनचर्या में शुमार है। उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी बंदगी सभी छोटे बड़ों के प्रति नतमस्तक होना। आशीर्वाद का आदान-प्रदान होना उनकी शानदार रवायत है। चेहरे पर सदा मुस्कान बिखेरना उनके आभामंडल को महिमामंडित करता है।