विशेष सम्पादकीय: हाथरस की घटना के दाव-पेंच, संवेदना-सहानुभूति-सहयोग की सौदेबाजी

विशेष सम्पादकीय: हाथरस की घटना के दाव-पेंच, संवेदना-सहानुभूति-सहयोग की सौदेबाजी

रिपोर्ट- प्रेम शंकर पाण्डेय ✍️

विशेष सम्पादकीय 

हाथरस की घटना ने मानवता को शर्मसार ही किया है। इससे दलों व नेताओं, प्रशासन और अधिकारियों, मीडिया और पत्रकारों द्वारा संवेदनाओं-सहानुभूति की आग जलाकर विरोधियों को जलाने और अपने को चमकाने की कवायद और मानसिकता देखी जा रही है वह दुर्भाग्यपूर्ण है तथा मानवीयता के साथ स्पष्ट रूप से सौदेबाजी भी है। इसके साथ ही भुक्तभोगियों को संकट की घड़ी में सहानुभूति-सहयोग और संवेदना दिखाकर भ्रमित करने और बरगलाने का भी प्रयास तो एकदम निचले स्तर का घृणित कृत्य है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं। प्रशासन जो पीड़िता को अंतिम संस्कार परंपरागत तरीके से नहीं करने दिया, और रात में अंतिम संस्कार करना जबकि हिन्दू धर्म में निष्ेाध है, यह तो अपराध की श्रेणी में आता है, और अपराध करने वाले अब तक सजा से छूट क्यों, प्रशासन का मुखिया डीएम जो बार -बार झूठ बोल रहा है और परिजनों पर दबाव डालने का भी दुस्साहस कर रहा है उसे अब तक क्यों नहीं सजा दी गई? जनता को भेड़ की संज्ञा दी गई है। इसीलिए तो जनता को टुकड़ो-टुकड़ों में विभिन्न विचारों में बांटकर एकजुट होने से रोकने का भी प्रयास किया जाता है। लेकिन अंतिम लक्ष्य तो मानवता और न्याय होना चाहिए। याद रखें, किसी के साथ भी कोई घटना हो सकती है, अतः न्याय के लिए संघर्ष और लक्ष्य सुस्पष्ट हों। अब भुक्तभोगियों को भी अपने को मजबूत करने के साथ ही इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए कि उनकी कमजोरी और स्थिति का कोई बरगलाकर अनुचित लाभ न उठाए। जीवन तो अपने पुरुषार्थ और दम पर ही फलता-फूलता है। यहां तो लोग दूसरों के आंसूओं में अपनी दम तोड़ती आकांक्षा-विश्वास और अपने मृत प्राय जीवन को स्पंदित करने वाली संजीवनी तलाश में लगे हुए हैं।

                                लेखक 

                            संजय पाण्डेय ✍️

 वरिष्ठ पत्रकार पत्रकार(अमर उजाला, जनसंदेश टाइम्स)