जज्बे की जीत..पिता थे सुरक्षा गार्ड सरकारी स्कूल में पढ़कर बेटा बना आई ए एस ऑफिसर

जज्बे की जीत..पिता थे सुरक्षा गार्ड सरकारी  स्कूल में पढ़कर बेटा बना आई ए एस ऑफिसर

रिपोर्ट-डॉ अरुण कुमार मिश्र / सुशील कुमार पांडेय✍️

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तू गिरकर उठते रहना 

कुछ भी हो बस चलते रहना

ठोकरें कब तक रास्ता रोक पाएगी,

अगर कोशिश में है जान तो

किस्मत भी पलट जाएगी।

रायबरेली । संफलता किसे अच्छी नहीं लगती। लोग सफल होने के लिये दिन रात मेहनत करते हैं ऐसे में जिनके इरादे और हौसले बुलंद हों तो निश्चित ही वे लोग अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं और सबके लिये सफलता की एक नई मिशाल पेश करते हैं। उत्तर प्रदेश के राय बरेली जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाले सूर्यकांत द्विवेदी सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते थे और सभी से कहते थे कि एक दिन उनका बेटा भी सरकारी अफसर बनेगा। वो हवा में बाते नहीं करते थे अपने बेटे को अफसर बनाने के लिए पिता ने हर संभव प्रयास किए और उनके बेटे कुलदीप द्विवेदी ने पिता की मेहनत और समाज से किए वादे को बेकार नहीं जाने दिया। 2015 में पिता का सपना और बेटे की मेहनत सफल हुई जब बेटे कुलदीप द्विवेदी ने यूपीएससी परीक्षा में ऑलओवर 242वीं रेंक हासिल की। कुलदीप की कहानी इसलिए खास है क्योंकि जिन परिस्थितियों में रहकर उन्होंने प्रतिष्ठित परीक्षा को पास किया उसमें आमतौर पर कई छात्र पढ़ाई छोड़ कमाने की सोचने लगते हैं। कुलदीप के पिता लखनऊ विश्वविद्यालय में सुरक्षा गार्ड थे। 1991 में उन्होंने ड्यूटी जॉइन की थी, तब उनकी तनख्वाह 1100 रुपये थी। उनका 6 लोगों का परिवार पिता के जरिए ही चलता था। लेकिन जब बच्चे बड़े हुए तो पढ़ाई के खर्चे बढ़ने लगे। समय के साथ उनकी सैलरी तो बढ़ी लेकिन वो नाकाफी थी, इसलिए उन्होंने अपनी ड्यूटी के बाद खेतों पर भी टाइम देना शुरू कर दिया। अब वो ड्यूटी कर के खेतों में आकर जुट जाते। वो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे इसलिए उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिल सकी यही कारण था कि वो पढ़ाई की कीमत अच्छे से जानते थे। उन्होंने पूरे जी जान से मेहनत कर बच्चों को पढ़ाया। उनके बच्चों ने पढ़ लिख कर कोई न कोई प्राइवेट नौकरी हासिल कर लिया और धीरे धीरे परिवार की हालत सुधरी। लेकिन उन्हें गर्व तब हुआ जब उनके सबसे छोटे बेटे कुलदीप ने उनका अधिकारी बनने का सपना पूरा किया। कुलदीप की प्राथमिक से लेकर इंटरमीडिएट तक की शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से हुई। उनके सारे भाई बहन हिंदी मीडियम और सरकारी स्कूल से ही पढ़े। 2009 में कुलदीप ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में बीए किया और यहीं से ज्योग्राफी में 2011 में एम.ए किया। इसके बाद वो यूपीएससी परीक्षा की तैयारी में जुट गए। इसके लिए वो दिल्ली चले गए और किराए पर कमरा लेकर परीक्षा की तैयारी करने लगे। क्योंकि उन्हें घर से ज्यादा पैसे नहीं भेजे जाते थे इसलिए वो शेयरिंग में रूम में रहते यहां तक कि उन्होंने किताबें भी नहीं खरीदीं और अपने दूसरे दोस्तों की किताबें मांग कर उन्होंने पढ़ाई की। कुलदीप अपना हर काम रूप पार्टनर के साथ मिलकर करते क्योंकि इससे पैसे बच जाते। पहले साल तो वो परीक्षा में प्री तक क्लियर नहीं कर सके। दूसरे साल प्री हुआ तो मेंन्स में अटक गए। उनका दो साल लगातार असफल होना उनके लिए डेडलाइन जैसा था क्योंकि पिताजी घर से ज्यादा दिनों तक पैसा नहीं भेज सकते थे। आखिरकार 2015 में कुलदीप की मेहनत और मां बाप की आशाएं पूरी हुईं, उन्होंने यूपीएससी परीक्षा में 242वीं रैंक हासिल कर ली। कुलदीप ने इंडियन रेवेन्यू सर्विसेस को चुना और अपना सालों का सपना साकार कर दिखाया।