सहिष्णुता, समन्वय और भारतीयता के अद्वितीय संदेश वाहक थे स्वामी विवेकानंद

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय
12 जनवरी - राष्ट्रीय युवा दिवस
भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा भारतीय जनमानस के मन मस्तिष्क और हृदय में अंत्यत प्राचीन काल से विद्यमान रही है। परन्तु आधुनिक, तार्किक और वैज्ञानिक अर्थों में भारतीय राष्ट्रवाद का निर्माण और विकास ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध समेकित संघर्ष करते हुए हुआ। ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा शासित भारत में उन्नीसवीं शताब्दी में आध्यात्मिक संतों और समाज सुधारको ने भारतीय जनमानस में जोश भरने और राष्ट्रवाद के निर्माण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिसमें आधुनिक काल में अद्वैत वेदांत के महान प्रतिपादक, ब्रह्मज्ञानी, निर्विकल्प समाधि में अक्षर ब्रह्म का साक्षात्कार करने वाले और जीवन-मुक्त संन्यासी स्वामी विवेकानंद इन आध्यात्मिक संतों और समाज सुधारको में अग्रपांक्तेय थे।
ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा निरंतर चलाए गए दमन चक्र के फलस्वरूप हताश-निराश भारतीय जनमानस में साहस, वीरता और जोश भरने का विवेकानंद ने अद्वितीय प्रयास किया। इसके साथ अपने संदेशों के माध्यम से विवेकानंद ने लोगों को भारतीयता का बोध कराया। स्वामी विवेकानंद भारत में व्याप्त हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, जैन, बौद्ध और अन्य संस्कृतियों के सहकार, समन्वय और सहमिलन में ही असली भारतीयता का दिग्दर्शन कराना चाहते थे। वह अपनी अराधना और साधना में भी सहकार, समन्वय और सहमिलन का स्वयं प्रयोग करते थे। अपने कश्मीर प्रवास के दौरान उन्होंने अपने मुसलमान नाविक की चार वर्ष की बेटी की उमा के रूप में आराधना किया था। अपनी विलक्षण आध्यात्मिक प्रतिभा से स्वामी जी ने आराध्यों में भी एकाकार स्थापित करने का अनूठा प्रयास किया। बंगाली पृष्ठभूमि में पले -बढे स्वामी जी काली के स्वाभाविक उपासक थे। काली को अनार्यों की क्रूर , रक्त पिपासु देवी समझकर उपहास करने वाले ईसाइयों को कड़ी चुनौती देते हुए यह बताया कि- भारतीय संस्कृति के प्रसार के क्रम में यही काली और उमा, ईसा मसीह की माता कन्या मेरी के रूप में सर्वत्र पूजित हो रही है।
ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सुनियोजित तरीके से किए गए आर्थिक शोषण से भारत लगातार कंगाल होता जा रहा था। लगातार शोषण और निरंतर संचालित दमन चक्र के साथ -साथ ब्रिटिश साम्राज्य ने भारतीय लोकमानस के मन और मस्तिष्क में बौद्धिक, तार्किक, मानसिक, वैज्ञानिक , सांस्कृतिक और सामाजिक हीनता का भाव ( Infiriarty complex ) भरने का सुनियोजित प्रयास किया। स्वामी विवेकानन्द ने प्राचीन भारत की महान दार्शनिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक और भौतिक उपलब्धियों तथा गौरवशाली परम्पराओं को स्मरण कराते हुए भारतीय जनमानस के मन और मस्तिष्क से हीनता के भाव से उबारने का श्लाघनीय कार्य किया तथा अपने ओजस्वी संदेशो और प्रवचनों तथा तेजस्वी व्यक्तित्व के माध्यम से भारतीय जनमानस में साहस, वीरता, पराक्रम, संघर्ष के लिए आवश्यक निर्भीकता, आत्मविश्वास और आत्मबल भरने का अद्वितीय प्रयास किया। भारतीय जनमानस में साहस, पराक्रम, आत्मविश्वास और आत्म गौरव का भाव भरने के साथ -साथ भारत की सामाजिक संरचना में व्याप्त अंतर्विरोधों, मतभेदों और परस्पर विरोधी दृष्टिकोणों को मिटाकर समन्वय, सहकार, साहचर्य और सद्भावना स्थापित करने में स्वामी जी ने अद्भुत प्रयास किया। विभाजनकारी नीतियों को भारत में अधिरोपित करने की मंशा से ब्रिटिश साम्राज्य के पक्ष पोषक चिंतको और विचारकों ने भारतीय समाज को आर्य , अनार्य, द्रविड़ और कोल इत्यादि प्रजातियों में विखंडित समाज बताया। स्वामी विवेकानन्द ने प्रजाति संबंधी इस दृष्टिकोण का अपनी तार्किक क्षमता से विरोध किया , खंडन किया और जोरदार तर्क दिया कि - पश्चिमी दुनिया के लोग मानते हैं कि - जब मानव का विकास बंदरों से हुआ है तो मनुष्य का आर्य, अनार्य, द्रविड़ और कोल इत्यादि प्रजातियों के रूप में विभाजन अतार्किक, अबौद्धिक और अमानवीय है। ज्ञानयोगी और अनासक्त कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद ने आर्य, अनार्य द्रविड़ और कोल इत्यादि पर बहस को अनावश्यक साबित करते हुए सम्पूर्ण जनमानस के हृदय में भारतीयता का विचार ( Idea of India ) भरने का अद्वितीय प्रयास किया। वस्तुत: स्वामी जी ने पाश्चात्य विचारों के निरंतर बौद्धिक, वैचारिक और सांस्कृतिक हमलों और आलाचनाओ से टूटते - बिखरते भारतीय समाज को संकल्पित भाव से संगठित करने का कार्य किया। आध्यात्मिक वेदांत को व्यवस्थित और व्यवहारिक रूप देते हुए स्वामी जी ने भारतीय लोकमानस में आत्मविश्वास, आत्म गौरव, आत्म निर्भरता तथा ' सत्यमेव मृगेंद्रता ' के शक्तियोग का सशक्त संदेश दिया।
स्वामी विवेकानन्द का व्यक्तित्व ओजस्वी, तेजस्वी, शक्तिशाली, सर्वतोमुखी और युवा हृदयो के लिए अनुकरणीय था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते थे जब विवेकानन्द को पढ़ते समझते हैं तो संघर्ष करने का साहस , उर्जा के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम हजार गुना बढ़ जाता हैं। गुरुवर रविन्द्र नाथ टैगोर यह मानते थे कि-अगर भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद के कार्यों को पढ़ना और समझना चाहिए। महान स्वाधीनता संग्राम सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस स्वामी जी के व्यक्तित्व और उनकी शिक्षाओं से गहरे रूप से प्रभावित थे तथा स्वामी विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। उस दौर के अधिकांश उत्साहित युवा स्वामी जी के व्यक्तित्व से अनुप्राणित होते थे। उनका शारीरिक सौष्ठव खिलाड़ियों और कुशल धावकों की तरह गठीला, सुडौल और पुष्ट था फिर भी उन्होंने अपनी योग साधना से ब्रह्मज्ञानियों की भांति परम सत् से साक्षात्कार किया था और रहस्यानुभूति प्राप्त की थी। आध्यात्मिक प्रतिभा से सम्पन्न स्वामी विवेकानंद विज्ञान के मौलिक सिद्धांतो से परिचित थे। इसलिए दुःखित, दमित, दलित, शोषित और उत्पीड़ित मानव समुदाय का कष्ट दूर करने की स्वामी जी के हृदय में अत्यंत व्यग्रता थी।
रामकृष्ण परमहंस के परमप्रिय अनुपम शिष्य, रामकृष्ण मिशन के संस्थापक, राम कृष्ण परमहंस के माध्यम से अक्षर ब्रह्म का साक्षात्कार करने वाले, अद्वैत वेदांत के निष्णात भाष्याकार और वैश्विक व्याख्याकार, महान कर्मयोगी, दुःखित दमित दलित शोषित पीड़ित के उद्धारक, हताश-निराश और लगभग मृतप्राय जनमानस के मन मस्तिष्क और हृदय में वीरता पराक्रम साहस निडरता निर्भीकता आत्मविश्वास आत्मबल और आत्म गौरव तथा आत्म निर्भरता का भाव भरने वाले प्रज्ञावान कुशाग्र बुद्धि तत्त्ववेत्ता , कालजयी संन्यासी, अंर्तर्धामि्क समन्वय के प्रबल पक्षधर, सर्वविध , सर्वत्र अभयता का संदेश देने वाले स्वामी विवेकानंद को उनकी जयंती के अवसर पर देशवासियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
लेखक
मनोज कुमार सिंह
लेखक/साहित्यकार/उप-सम्पादक कर्म श्री पत्रिका
घोसी- मऊ