नाम पूछ कर....

नाम पूछ कर....

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय

एक बेगुनाह का क़त्ल पूरी इंसानियत का क़त्ल है :- सूरह अल-माइदा (5:32) अल कुरान। फ़िर वह कौन लोग हैं जिन्होंने पहलगाम में मासूम बेगुनाहों का नाम पूछकर बेदर्दी से क़त्ल कर दिया? शायद उन्हें कुरान के हुक्म का इल्म नहीं‌ ? फिर पूछता हूं कि कौन हैं यह आतंकी हत्यारे? जिन्हें कुरान के हुक्म का इल्म नहीं। यद्यपि सरकार द्वारा जारी 16 मृतकों की लिस्ट में अनंतनाग के ही एक काश्मीरी मुसलमान सैयद हुसैन शाह भी हैं। लगता है कि आतंकी हत्यारों ने उनसे नाम नहीं पूछा , उन्हें उनके काश्मीरी हुलिए से भी नहीं पहचाना। यह भी संभव है कि दो हत्यारों द्वारा चलाई 50 राउंड की ताबड़तोड़ फायरिंग में वह चपेट में आ गयें हों। जो भी हुआ हो मगर यह तथ्य है कि मृतकों में सिर्फ़ एक धर्म के लोग नहीं हैं। फिर भी यह संभव है कि हत्यारों ने नाम पूछ कर सभी की हत्या की होगी। जो सैलानी बच गए उनके बयान सिद्ध करते हैं कि ऐसा ही हुआ है। यह निंदनीय है, घोर निंदनीय है...

दरअसल काश्मीर देश का अभिन्न अंग है , शेष भारत में नाम पूछ कर हुए हत्याओं और बहती सांप्रदायिक हवाओं का असर वहां भी हुआ होगा यह मानने में कोई गुरेज नहीं है। यद्यपि नहीं होना चाहिए। शेष भारत में नाम पूछ कर पहली हत्या पुणे के मोहसिन शेख की हुई थी , सन् 2014 में एक आईटी पेशेवर मोहसिन शेख को हिंदू राष्ट्र सेना के नेता सहित 20 लोगों ने सड़क पर पीट पीट कर मार डाला। वह सभी गिरफ्तार हुए और फिर उन्हें बरी कर दिया गया। यह नाम पूछ कर देश में पहली हत्या की गई, मोहसिन शेख के हत्यारों को दंडित करने की बजाय रिहा कर दिया गया। शेष भारत को संदेश दिया गया कि तुम भी ऐसा करते हो तो बचाया जाएगा। इसके बाद नाम पूछ कर की गई हत्याओं की बाढ़ आ गयी , दादरी के एखलाक , पहलू खान, कासिम , रकबर , उमर , अलीमुद्दीन, मिन्हाज अंसारी, तबरेज अंसारी , जुनैद, ज़ाहिद समेत ह्यूमन राइट्स वॉच और इंडियास्पेंड जैसे संगठनों के दिए आंकड़े के अनुसार केवल 2014 से 2019 के बीच गाय से संबंधित हिंसा में 140 से अधिक मुसलमानों को नाम पूछ कर माब लिंचिंग की गयी। नाम पूछ कर इसी देश में 80 के दशक में क्या हुआ दुनिया ने देखा है , बेगुनाह सिखों को सिर्फ उनकी धार्मिक पहचान के कारण पूरे देश में चुन चुन कर मारा गया, उन्हें टायरों में बांध कर जलाया गया, उनकी देश भर में संपत्तियां लूटी गईं और ऐसी स्थिति कर दी गई कि उन्होंने अपनी पगड़ी पहननी छोड़ दी , अपने केश कटवा कर उन जैसे हो गये जैसे उनका नाम पूछ कर हत्याएं करने वाले थे। काश्मीर में ही एक गांव है "कुनोन पोशपोरा" 23-24 फ़रवरी 1991 की रात 4 राजस्थान राइफल्स की 68वीं ब्रिगेड की एक बटालियन ने जम्मू और कश्मीर के कुपवाड़ा में निकटवर्ती कुनान-पोशपोरा गांवों में घेराबंदी और तलाशी अभियान चलाया। सेना पर आरोप लगा कि इस गांव को घेर कर सभी 100 से अधिक महिलाओं का बारी बारी से बलात्कार किया। जिसके परिणामस्वरूप 5 बच्चियो के जन्म के रूप में सामने आया। सामूहिक बलात्कार की इस घटना के 22 साल बाद मजिस्ट्रेट ने इस घटना के नए सिरे से जांच के आदेश दिए हैं। यद्यपि कोर्ट मार्शल करने के बाद पहले भी सभी आरोपियों को क्लीन चिट दी गई। इन 5 बच्चियो ने 14 फ़रवरी 2016 को जयपुर में "Do you remember Kunan poshpora " टाइटल से बुक भी लांच की और वहां मौजूद होकर बताया कि हम वही पांच बच्चियां हैं। इनका बाप कौन है आजतक पता नहीं।

अभी हाल में एक ट्रेन में पुलिस अधिकारी चेतन सिंह चौधरी ने क्या किया? नाम पूछ कर ही चार लोगों को गोली मार दी। गलत हुआ‌, नहीं होना चाहिए था। यद्यपि इन तमाम उदाहरणों और पहलगाम में हुई आतंकवादी घटना की ना तुलना हो सकती है। बात केवल सांप्रदायिकता की है। कहने का अर्थ यह है कि सांप्रदायिकता बेलगाम होती है, यह जब फैलती है तो इसके फैलने की कोई सीमा नहीं होती, संभव है कि कल पहलगाम भी इसके चपेट में आ गया हो , जीवित बचे सैलानियों के अनुसार आया ही है। यह घोर निंदनीय है। यह दुःखद है , देश के तमाम मुख्यमंत्रियों, तमाम बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को सोचना चाहिए कि वोट के लिए वह सांप्रदायिकता का जो खेल खेल रहे हैं उसका भुगतान मासूम नागरिकों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है।

देश के मुसलमानों से इस घटना के लिए सवाल पूछने की बजाय सरकार से सवाल पूछिए कि जहां इतने लोग पर्यटन के लिए थे वहां सुरक्षा क्या थी ? सुरक्षा बल कहां थे ? कोई कैसे दो तीन लोग वहां आकर बेधड़क फायरिंग कर देते हैं? सरकारों को भी सोचना चाहिए कि देश और देश के नागरिकों की सुरक्षा पर 100% ध्यान देने की बजाय हर वक्त सांप्रदायिक आधार पर देश में आग लगाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। क्योंकि सांप्रदायिकता एक आग है जब फैलती है तो किसी को नहीं बख्शती , सबको चपेट में ले लेती है। इसीलिए देश हित में सभी भारतीय लोगों को एक होना ही पड़ेगा और कोई विकल्प नहीं है। बाकी पहलगाम के आतंकियों को भारतीय सेना द्वारा जितनी जल्दी मारा जाए , वह मृतकों के लिए सही श्रृद्धांजली होगी। सभी मृतकों को विनम्र श्रद्धांजलि

मो. जाहिद ✍️