जब कलम लहूलुहान हो जाए: पत्रकारों की हत्याएं और लोकतंत्र का दर्द

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय
उत्तर प्रदेश में पत्रकारों की हत्याएं:चौथे स्तंभ पर बढ़ते हमले और सरकार की नाकामी।
*शब्दों की दुनिया में जीने वाले पत्रकार,* जो सच को उजागर करने की कीमत अपने खून से चुका रहे हैं—क्या हमारा समाज उनकी कुर्बानियों को महसूस कर पा रहा है? हर दिन स्याही से लिखे जाने वाले सच को जब गोलियों से मिटाया जाने लगे, तो यह सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र की हत्या होती है।
राघवेंद्र की चीखें और खामोश होती पत्रकारिता
*पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है,* लेकिन उत्तर प्रदेश में हालिया घटनाएं इस स्तंभ को कमजोर करने की भयावह तस्वीर पेश कर रही हैं।पत्रकारों पर हो रहे हमले, उनकी हत्याएं और प्रशासन की लचर कार्रवाई यह सवाल उठाने को मजबूर कर रही है कि क्या सरकार पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर है....?
सीतापुर में पत्रकार राघवेंद्र की हत्या:सरकार पर उठते सवाल
*सीतापुर में दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र बाजपेई की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई।* इस निर्मम हत्या से पूरे प्रदेश में आक्रोश फैल गया है।पत्रकारों के संगठन और जिला पत्रकार संघ ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा और मांग की कि पीड़ित परिवार को न्याय दिया जाए।संघ ने कहा कि यदि जल्द न्याय नहीं मिला,तो पत्रकार सड़क पर उतरकर आंदोलन करने को मजबूर होंगे।
*इस घटना के बाद प्रदेश के अन्य जिलों में भी पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे हैं।* बीते दिनों फतेहपुर में पत्रकार उग्रसेन गुप्ता की ओवरलोड ट्रक से कुचलकर मौत हो गई। उनके परिजनों का आरोप है कि यह कोई हादसा नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश थी।पत्रकारों ने इस मामले में भी निष्पक्ष जांच और परिवार को आर्थिक सहायता देने की मांग की है।
अकेले 2020 में कुल सात पत्रकार राज्य में मारे गये- राकेश सिंह, सूरज पांडे, उदय पासवान, रतन सिंह, विक्रम जोशी, फराज़ असलम और शुभम मणि त्रिपाठी। राकेश सिंह का केस कई जगह राकेश सिंह ‘निर्भीक’ के नाम से भी रिपोर्ट हुआ है। बलरामपुर में उन्हें घर में आग लगाकर दबंगों ने मार डाला। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की पड़ताल बताती है कि भ्रष्टाचार को उजागर करने के चलते उनकी जान ली गयी। राकेश सिंह राष्ट्रीय स्वरूप अखबार से जुड़े थे। उन्नाव के शुभम मणि त्रिपाठी भी रेत माफिया के खिलाफ लिख रहे थे और उन्हें धमकियां मिली थीं। उन्होंने पुलिस में सुरक्षा की गुहार भी लगायी थी लेकिन उन्हें गोली मार दी गयी। गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी को भी दिनदहाड़े गोली मारी गयी। इसी साल बलिया के फेफना में टीवी पत्रकार रतन सिंह को भी गोली मारी गयी। सोनभद्र के बरवाडीह गांव में पत्रकार उदय पासवान और उनकी पत्नी की हत्या पीट-पीट के दबंगों ने कर दी। उन्नाव में अंग्रेजी के पत्रकार सूरज पांडे की लाश रेल की पटरी पर संदिग्ध परिस्थितियों में बरामद हुई थी। पुलिस ने इसे खुदकुशी बताया लेकिन परिवार ने हत्या बताते हुए एक महिला सब-इंस्पेक्टर और एक पुरुष कांस्टेबल पर आरोप लगाया, जिसके बाद उनकी गिरफ्तारी हुई। कौशांबी में फराज असलम की हत्या 7 अक्टूबर 2020 को हुई। फराज़ पैगाम-ए-दिल में संवाददाता थे। इस मामले में पुलिस को मुखबिरी के शक में हत्या की आशंका जतायी गयी है क्योंकि असलम पत्रकार होने के साथ-साथ पुलिस मित्र भी थे। इस हत्या के ज्यादा विवरण उपलब्ध नहीं हैं। पुलिस ने जिस शख्स को गिरफ्तार किया था उसने अपना जुर्म कुबूल कर लिया जिसके मुताबिक उसने असलम को इसलिए मारा क्योंकि वह उसके अवैध धंधों की सूचना पुलिस तक पहुंचाते थे। ज्यादातर मामलों में हुई गिरफ्तारियां इस बात की पुष्टि करती हैं कि मामला हत्या का था।
*प्रदेश में पत्रकारों पर बढ़ते हमले:कब रुकेगा यह सिलसिला.....?
*उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर हो रहे हमले और उनकी हत्याएं अब एक चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुकी हैं।* पिछले कुछ वर्षों में कई पत्रकारों की निर्मम हत्या कर दी गई, लेकिन प्रशासन की निष्क्रियता के कारण अपराधी बेखौफ घूम रहे हैं।
कब कब हुए हमले। जिससे छलनी हुआ ह्रदय
*बलिया (2020):- पत्रकार रतन सिंह की उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
*गाज़ियाबाद (2021):- पत्रकार विक्रम जोशी की बाइक सवार बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
*लखीमपुर खीरी (2021) :- पत्रकार रामनरेश यादव को संदिग्ध परिस्थितियों में मार दिया गया।*
*कुशीनगर (2022):- पत्रकार पत्रकार सुधीर सिंह की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।*
*फतेहपुर (2024):- पत्रकार दिलीप सैनी की गोली मारकर हत्या की गई*
*इन घटनाओं से यह साफ हो जाता है कि प्रदेश में पत्रकारों की सुरक्षा खतरे में है।* अपराधी निडर हैं,और प्रशासन की निष्क्रियता पत्रकारों की हत्याओं को बढ़ावा दे रही है।
पत्रकारों की सुरक्षा क्यों बनी बड़ी चुनौती....?
उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर बढ़ते हमलों के पीछे कई कारण हैं
सत्ताधारी और आपराधिक गठजोड़–कई मामलों में देखा गया है कि राजनीतिक और आपराधिक गठजोड़ पत्रकारों के लिए खतरा बन जाता है।
निष्क्रिय पुलिस प्रशासन–कई बार पुलिस पत्रकारों को ही धमकाने लगती है या उनकी शिकायतों को नजरअंदाज कर देती है।
बढ़ता भ्रष्टाचार–पत्रकार जब किसी घोटाले या घपले का खुलासा करते हैं*,तो वे माफिया और भ्रष्ट तंत्र के निशाने पर आ जाते हैं।
पत्रकार सुरक्षा कानून का अभाव–अब तक कोई ठोस पत्रकार सुरक्षा कानून लागू नहीं किया* गया है,जिससे अपराधियों को खुली छूट मिल रही है।
प्रदेशभर के पत्रकार संगठन इस बात पर एकमत हो कि सरकार को पत्रकार सुरक्षा कानून तत्काल लागू करना चाहिए।पत्रकारों ने यह भी मांग की है कि अगर किसी पत्रकार की हत्या होती है,तो उसके परिवार को कम से कम 50लाख रुपये मुआवजा और एक परिजन को सरकारी नौकरी दी जाए।
पत्रकारों की हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या नहीं, बल्कि लोकतंत्र की हत्या है।अगर सरकार ने जल्द ठोस कदम नहीं उठाए,तो हमें उग्र आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ेगा।"
सरकार और प्रशासन को क्या करना चाहिए......?
*पत्रकार सुरक्षा कानून लागू किया जाए।
हर जिले में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए विशेष निगरानी टीम गठित की जाए।
पत्रकारों की हत्या के मामलों में त्वरित कार्रवाई हो और अपराधियों को कड़ी सजा दी जाए।
*पत्रकारों के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किया जाए,जहां वे किसी भी खतरे की शिकायत दर्ज करा सकें।*
निष्कर्ष:-पत्रकारों की लगातार हो रही हत्याएं लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत हैं*।अगर सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेती, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।पत्रकार सिर्फ खबर नहीं लिखते,बल्कि समाज के हक की आवाज़ बनते हैं।सरकार को चाहिए कि वह पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे,ताकि वे बिना डर के अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सकें।