ऐसा देश है मेरा...

ऐसा देश है मेरा...

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय 

     एक बार हिमालय घाटी में दुनिया के सभी देशों के परिंदों की महफिल सजी।जिसमें हर देश के परिंदों को अपने देश की विशेषताएं बतानी थीं। सब ने बारी_बारी अपने देश की विशेषताएं गिनाई,जब भारतीय प्रतिनिधि कोयल की बारी आई तो उसने अपने प्रिय देश भारत की प्रशंसा कुछ इस प्रकार की।
     मेरा नाम कोयल है।वैसे तो मेरा कोई धर्म नहीं है फिर भी मैं अपने प्रिय ईश्वर के एकेश्वरवाद का गीत सांझ_सवेरे गाती हूं। सैकड़ों सदियां बीत जाने पर आज भी हर लेखक_ कवि मेरे नाम लिये बिना अपनी लेखनी में अधूरापन महसूस करता है। बहरहाल!अब मैं अपनी बात न करके सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान की बात करती हूं।वह एक ऐसा जादू भरा देश है जहां मुस्कुराते हुए सावन के आंसू,ग्रीष्म ऋतु की लू,पूस की आग लगाती छिटकी चांदनी,पीली चादर ओढ़े सरसों के पौधे,आकाश को चुम्बन देते पहाड़,गंगा के मौन किनारे रावी व चनाब की गीत गाती लहरें हैं तो वहीं दूसरी ओर मस्जिदों व मन्दिरों के सुकून और मदरसों व गुरुकुल की सादगी का अनोखा दृश्य भी है।
      मैंने भारतवर्ष में एक लम्बा समय बिताया है जहां आज भी मस्जिदों का अजानों और मन्दिरों की घण्टों की सदाओं पर पौ फटते हैं،सोते हुए गांव खेत के रास्ते जगते हैं।यहां के आसमानों में अब भी घनघोर घटाएं छाती हैं और बरखाएं वैसे ही दिलों को लुभाती हैं।वनों से आज भी पवन के शीतल झोंके आते हैं।आम की गीली शाखों पर मेरी कू-कू और गौरैयों के चहचहे जारी रहते हैं और मेरे देश की महान संस्कृति सुन्दर घाटियों में कल कल करते झरनों,देवदारों के बीच से जाती सुन्दर पगडंडियों और सुगन्धित पवनों में सांस लेती रब की भक्ति में डूबे व्यक्ति का रूप धारण करके मानव के हृदय को सुकून देती है।
     मैं उस देश की वासी हूं जहां बसन्ती फूलों की खिलखिलाहट, 
पत्थरों से सर टकराते पहाड़ी नदियों, बरसात में भीगे हुए देवदारों के घनेरे जंगलों,नागिन की तरह बल खाती_ लहराती पगडंडियों और उससे आलिंगन किये हुए हरे पेड़ों के छायों, सांस लेती जीती_जागती विहानों, मनमोहक कुदरती नज़ारों,शाम को घोसले में लौटते पंछियों की लम्बी कतारों,मस्जिदों के मिनारों और दूर कहीं किसी चरवाहे की बांसुरी से निकली हुई दर्द भरी सुर से गुंजी घाटियों ने हमारे प्रिय देश को लोगों के बीच ईर्ष्या और प्रेम का कारण बना दिया है।
    मेरा मानना है कि आज विश्व एक शाखायुक्त पेड़ के भांति हो गई है जिसमें अनगिनत डालियां हैं।हर शाखा मानो एक देश है और मेरा प्रिय देश भी इसी पेड़ की हरी भरी शाखा है परन्तु ऐसा नहीं है कि मुझे केवल अपने देश से प्रेम है बल्कि अन्य शाखाओं यहां तक कि उसकी पत्तियों से भी प्रेम है। सदियों से विश्व के सभी देश अपनी संस्कृति के साथ जीते_मरते रहें हैं और उन सबका रंग_ढंग अलग-अलग है मेरे प्रिय देश भारत का भी अपना एक रंग है,उसका ये रंग मुझे सबसे अनोखा,निराला और प्यारा लगता है......

साभार

नज्जमुसाकिब अब्बासी 

संस्थापक नया सवेरा फाउंडेशन गाज़ीपुर (उप्र)

व सौहार्द फेलोशिप मेंटर