विचार बिन्दु : श्रीकृष्ण का ज्ञान और आज के युवा

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय
भारत की आत्मा में यदि किसी एक व्यक्तित्व का सबसे गहरा प्रभाव है तो वह है भगवान श्रीकृष्ण। गीता का उपदेश हो, मुरली की मधुरता हो, या युद्धभूमि का अदम्य साहस— श्रीकृष्ण हर रूप में जीवन का मार्ग दिखाते हैं। आज के समय में जब भारत का युवा अपने जीवन की चुनौतियों से जूझ रहा है, तब कृष्ण के गुणों का अनुसरण ही उसके लिए सबसे बड़ा रास्ता बन सकता है ठीक उसी प्रकार से जैसे जल मे डूबती हुई चींटी के लिए वृक्ष का पत्ता सहारा बना था
मैं स्वयं आज हजारों ऐसे छात्रों से जुड़ा हूँ जो नीट की तैयारी कर रहे हैं। उनमें से अधिकतर 17–18 साल के हैं और अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। उनमें मैं वही असमंजस देखता हूँ जो महाभारत के युद्धभूमि में अर्जुन के मन में था— असफलता का भय, प्रतियोगिता का दबाव और जीवन का अनिश्चित रास्ता। ऐसे में श्रीकृष्ण का पहला और सबसे बड़ा गुण सामने आता है— संकट में धैर्य और विवेक। कृष्ण ने अर्जुन को यही समझाया कि भागना समाधान नहीं है, लड़ना ही कर्तव्य है। यही संदेश आज के छात्र के लिए भी है— असफलता से भागना नहीं, बल्कि डटे रहना ही सच्ची विजय का मार्ग है।
लेकिन दुख की बात यह है कि जिस क्षेत्र में मैं हूँ, यानी चिकित्सा और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का क्षेत्र, वहीं सबसे अधिक आत्महत्याओं की खबरें भी आती हैं। पिछले वर्षों में हमने यह देखा कि सैकड़ो विद्यार्थी इस दबाव को झेल नहीं पाए और अपने अमूल्य जीवन को त्याग दिया उस जीवन को जो सभी जीवों मे श्रेष्ठ है जिसकी रचना ही ईश्वर ने इस सृष्टि की उत्थान के लिए की थी पर यह मनुष्य इतबा कमजोर पड़ गया है lयह सिर्फ एक छात्र की हार नहीं है, यह पूरे समाज की हार है। और यहीं कृष्ण का दूसरा गुण सामने आता है— जीवन का महत्त्व और आत्मा की अमरता। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा— “न हन्यते हन्यमाने शरीरे” — शरीर मर सकता है, आत्मा नहीं। अगर युवा यह समझ जाए कि एक असफलता अंत नहीं है, तो वह कभी इतना बड़ा कदम नहीं उठाएगा। असफलता जीवन का अंत नहीं, बल्कि सीखने और दोबारा खड़े होने का अवसर है।
तीसरा और सबसे ज़रूरी गुण है सही मार्गदर्शक का होना। जब अर्जुन ने गांडीव रख दिया, तब कृष्ण ने उसे मित्र और गुरु की भूमिका में संभाला। उन्होंने उसे गालियाँ नहीं दीं, दबाव नहीं डाला, बल्कि धैर्यपूर्वक समझाया और आत्मबल जगाया। यही भूमिका आज हर माता-पिता और शिक्षक को निभानी चाहिए।
यहाँ मैं अपने जीवन का अनुभव साझा करना चाहूँगा। बचपन में मेरा सपना था कि मैं अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कबड्डी खिलाड़ी बनूँ। उस समय मेरे पिताजी ने मुझे कभी रोका नहीं। उन्होंने यह नहीं कहा कि “तुम्हें सिर्फ डॉक्टर ही बनना है, नीट ही निकालना है।” इसके विपरीत, वे मुझे खुद कबड्डी के मैचों में लेकर जाते थे, ताकि मैं अपने सपनों को जी सकूँ। यह अनुभव मेरे लिए बहुत बड़ा संबल बना। और शायद यही कारण है कि जब मैंने नीट परीक्षा देने का निश्चय किया, तो मैं सफल हो पाया— क्योंकि मुझ पर दबाव नहीं था, बल्कि परिवार का साथ और विश्वास था।
यही तो कृष्ण की शिक्षा है— दबाव नहीं, समझ और सहयोग ही असली मार्गदर्शन है। अगर माता-पिता अपने बच्चों के मित्र बनें, उनके सपनों को समझें, तो बच्चे किसी भी क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। बच्चों को यह विश्वास दिलाना ज़रूरी है कि वे अकेले नहीं हैं— माँ-बाप, गुरु और समाज उनके साथ खड़े हैं।
आज भारत का युवा सबसे बड़ी पूँजी है। वह तकनीकी से लेकर खेलों तक, चिकित्सा से लेकर सेना तक हर क्षेत्र में दुनिया को नया रास्ता दिखा सकता है। लेकिन इसके लिए उसे कृष्ण से दो बातें सीखनी होंगी— कर्म और आत्मविश्वास। गीता में कृष्ण ने कहा था— “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” — यानी केवल कर्म पर ध्यान दो, फल की चिंता मत करो। यदि युवा इस मंत्र को अपने जीवन का आधार बना ले, तो उसे असफलता कभी हरा नहीं सकती।
इसके साथ ही चौथा गुण है संतुलन। कृष्ण ने जीवन को सिर्फ युद्ध नहीं बनाया, बल्कि उसमें संगीत, नृत्य, मित्रता और प्रेम भी शामिल था। यही संतुलन आज के युवाओं को भी सीखना होगा। केवल पढ़ाई ही जीवन नहीं है, खेलकूद, कला, परिवार और समाज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। जब जीवन संतुलित होगा तभी मन स्थिर रहेगा और आत्महत्या जैसी प्रवृत्तियाँ समाप्त होंगी।
आज ज़ब मै छात्रों से बात करता हूं तो देखता हूं की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि युवा अपने को दूसरों से तुलना में फँस जाता है। सोशल मीडिया हो या प्रतियोगी परीक्षाएँ, हर जगह उसे लगता है कि कोई उससे आगे है। लेकिन कृष्ण का पाँचवाँ और सबसे महत्वपूर्ण गुण यही है— स्वयं पर विश्वास। जब संपूर्ण संसार अर्जुन के सामने था, तब कृष्ण ने कहा— “स्वधर्मे निधनं श्रेयः, परधर्मो भयावहः"यानी अपने रास्ते पर चलना बेहतर है, चाहे उसमें मृत्यु ही क्यों न हो,दूसरों की नकल करना हमेशा विनाशकारी होता है। यही संदेश हर युवा को अपनाना चाहिए।
अगर हम इन गुणों को अपनाएँ जैसे धैर्य, आत्मा की अमरता का बोध, मित्रवत मार्गदर्शन, कर्म पर ध्यान और आत्मविश्वास— तो न केवल व्यक्तिगत जीवन सुधरेगा, बल्कि पूरा राष्ट्र आगे बढ़ेगा।
अंत में यही कहना चाहूँगा कि भगवान श्रीकृष्ण केवल द्वापर युग के नहीं हैं, वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। जिस तरह उन्होंने अर्जुन को निराशा से निकालकर योद्धा बनाया, उसी तरह आज के युवा को भी वे निराशा से निकाल सकते हैं। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि हम उनके गुणों को समझें, उन्हें जीवन में उतारें और माता-पिता, शिक्षक, समाज सब मिलकर युवाओं के मित्र बनें।
आज भारत को वही युवा चाहिए जो कठिनाइयों से भागे नहीं, बल्कि कृष्ण की तरह मुस्कुराते हुए उनका सामना करे। क्योंकि वही युवा इस देश को आगे ले जाएगा और नए भारत का निर्माण करेगा।
साभार
प्रभाव नारायण राय✍️
(एमबीबीएस छात्र)