न्याय का शासन सबसे महत्वपूर्ण - हजरत मुहम्मद साहब

न्याय का शासन सबसे महत्वपूर्ण - हजरत मुहम्मद साहब

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय 

हज़रत मुहम्मद साहब और न्याय

न्याय शासन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है ये बात इस्लाम धर्म के अंतिम संदेष्टा हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने अनुयायियों को सिखाया ही नहीं बल्कि स्वयं उस पर अमल भी किया है, उसकी नज़ीर उनके जीवन वृत्तांत में भरी पड़ी है, उसकी एक बानगी देखिए।

दोपहर वाली नमाज़ जुहर का समय है। हज़रत मुहम्मद मस्जिद में आते हैं और मिम्बर (वक्ता स्थल) पर विराजते हैं। आपके चचेरे भाई फज्ले बिन अब्बास भी साथ हैं। ये रबीउल अव्वल सन् 11 हिजरी की बात है। ये उन दिनों की बात है जब अनुपम आदर्श हज़रत मुहम्मद दुनिया से कूच करने वाले थे और आपकी तबीयत बहुत ख़राब थी। तेज बुखार की हालत में ही आप मस्जिद आए और मिम्बर पर बैठ गये। फिर अपने चचेरे भाई को आदेश दिया कि ईमान वालों को जमा करो। जब सहचरों की एक बड़ी संख्या इकट्ठा हो गयी तो अल्लाह के रसूल ने उनके सामने व्याख्यान दिया। यह एक ऐसा व्याख्यान था जिसको सुनकर सहचरों के दिल भर आये।

इस अवसर का वर्णन करते हुए चचेरे भाई कहते हैं कि उस समय मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सर में बहुत दर्द था। एक ज़र्द पट्टी मैंने आपके सर पर बांध दी थी। आप मेरे ही बाजू पर टेक लगाकर मस्जिद में दाखिल हुए थे। इसी दर्द की हालत में आपने व्याख्यान दिया। सर्वप्रथम उन्होंने अल्लाह की प्रशंसा की और फिर कहा, मेरा तुम लोगों से विदा लेने का समय निकट आ गया है, इसलिए चाहता हूँ कि तुम लोगों से कहूँ कि जिस किसी को मुझसे किसी प्रकार का बदला लेना हो तो ले ले। यदि मैंने किसी की कमर पर मारा है तो मेरी कमर हाजिर है। यदि मैंने किसी को बुरा-भला कहा है तो वो आए और मुझे सख्त सुस्त कह ले। जिसका कोई बकाया है मुझसे ले ले और कोई भी ये न सोचे कि बदला लेने से मेरे दिल में कोई बुरा ख्याल आयेगा। अल्लाह का शुक्र है कि मैं ईर्ष्या और द्वेष से सुरक्षित हूँ, इसलिए खूब समझ लो ये मेरी हार्दिक इच्छा है कि जिसका भी मुझ पर कोई हक बनता हो वो अपना हक मुझसे ले ले या मुझे माफ़ कर दे ताकि मैं अपने रब के पास सुकून से जाऊं।

हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ये कहने के उपरान्त प्रतीक्षा करते रहे कि कोई कुछ कहे, कोई आगे बढ़ कर बदला ले। मगर किसी ने कुछ न कहा न कोई आगे बढ़ा, और कोई कहता भी क्या? करूणा सागर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कभी किसी पर अत्याचार और ज्यादती की ही नहीं थी।

कुछ देर ठहर कर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा कि ये एक ऐलान इस बात के लिए पर्याप्त नहीं है, मैं फिर ऐलान करूंगा। उसके बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जुहर की नमाज अदा की और फिर दोबारा मिम्बर पर बैठे और कहा, तुम में से कोई भी बदला लेने में तनिक भी न झिझके।

पवित्र कुरआन में है- "ऐ ईमान वालो! मजबूती से न्याय पर अडिग रहो। "इसी का प्रदर्शन हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कर रहे थे। विश्व के समस्त इतिहासकार और विद्वान इस पर एकमत हैं कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने लिए किसी से कभी बदला नहीं लिया। फिर भी बार-बार कह रहे थे कि मुझसे बदला ले लो।

जैसा कि शुरू में कहा गया कि न्याय शासन की सबसे उच्च नीति है। शासक छोटा हो या बड़ा न्याय सबके लिए होना चाहिए। जो शासक अपने में ही डूबा रहता है वह कभी कानून की हिफाज़त नहीं कर सकता। विश्व को पहला लिखित संविधान देने वाले मदीना के जननायक का जीवन चरित्र कुछ और ही है। जिस पवित्र व्यक्तित्व ने मदीने के इस्लामी क्षेत्र को दस लाख मील तक विस्तृत कर दिया, उनका हाल ये था कि अपने आपको लोगों से कभी अलग नहीं रखा। मगर क्या आज के शासकों से ऐसी कल्पना की जा सकती है?

साभार 

नजमुस्साक़िब अब्बासी नदवी✍️

(लेखक नया सवेरा फाउंडेशन गाज़ीपुर के संस्थापक व सौहार्द फेलोशिप के मेंटर है)