आज जिनका जन्मदिन है : पेरियार
रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय
----------------------------
समाज में फैले अंधविश्वास व भेदभाव की जड़ धर्म है - पेरियार
......................…..…..….….….....….…....................….........
17 सितम्बर 1879 को जन्मे पेरियार शुरुआत में कट्टर गांधीवादी थे। वह साल 1919 में कांग्रेस में शामिल हुए। पेरियार को महात्मा गांधी की कई नीतियां काफी पसंद थीं, जैसे कि शराब का विरोध करना, स्वदेशी को अपनाना और छुआछूत मिटाने की बात करना। पेरियार ने अपनी पहचान बनाई केरल में हुए 1924 के वाइकोम सत्याग्रह से।
यह सत्याग्रह दलितों को केरल के एक प्रतिष्ठित मंदिर में प्रवेश दिलाने के लिए हुआ। यहां दलितों को सवर्णों से 32 फुट दूर रहना होता था। किसी भी मंदिर के आसपास वाली सड़क पर दलित नहीं जा सकते थे। इस सत्याग्रह में हिस्सा लेने के लिए पेरियार ने मद्रास कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया।
इस आंदोलन ने पेरियार को मद्रास प्रांत में गैर-ब्राह्मणों का नायक बना दिया। वाइकोम सत्याग्रह ब्राह्मणवाद के ख़िलाफ़ था और पेरियार ख़ुद ब्राह्मणों के मुखर विरोधी। उनका मानना था कि ब्राह्मणों की वजह से ही तमिल समाज में विभाजन हुआ। उन्होंने साल 1925 में ब्राह्मणवाद के मुद्दे पर ही कांग्रेस छोड़ दी। पेरियार का आरोप था कि कांग्रेस सिर्फ ब्राह्मणों के हित में काम कर रही है।
पेरियार समाज में फैले अंधविश्वास और भेदभाव की जड़ धर्म को मानते थे। उनका कहना था, 'धर्म ही हमें जाति के आधार पर बांटता है। इसे ब्राह्मणों ने ही बनाया है और मैं उनके वर्चस्व को ख़त्म करना चाहता हूं।' हालांकि, पेरियार का मानना था कि हिंदू धर्म की बुराइयों को ख़त्म करने के लिए इससे जुड़े रहना ज़रूरी है। यही वजह है कि जब आंबेडकर ने उनसे बौद्ध बनने को कहा, तो उन्होंने मना कर दिया।
दक्षिण भारत के कांग्रेस और ब्राह्मणवाद के विरोधी कई लोग पेरियार के साथ थे। लेकिन, पेरियार का हौसला बढ़ा मोहम्मद अली जिन्ना के समर्थन से। डॉ. भीमराव आंबेडकर की भी पेरियार के साथ सहानुभूति थी, क्योंकि वह भी ब्राह्मणवाद और दलितों के शोषण के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रहे थे। जिन्ना ने तो मद्रास (अब चेन्नई) में यहां तक कहा कि भारत को चार टुकड़ों में बांटा जाना चाहिए- हिंदुस्तान, पाकिस्तान, द्रविड़स्तान और बांग्लादेश।
जिन्ना ने भरोसा दिलाया कि वह अलग मुल्क की मांग में पेरियार के साथ हैं। उनसे इस मामले में जो भी बन पड़ेगा, वह करेंगे। बदले में पेरियार ने भी जिन्ना की अलग पाकिस्तान बनाने की मांग का पुरजोर समर्थन किया। लेकिन, बाद में जिन्ना के इरादे बदल गए। उन्होंने अपना पूरा ध्यान अलग मुस्लिम राष्ट्र की ओर केंद्रित कर लिया। वह किसी भी ऐसी दूसरी मुहिम से नहीं जुड़ना चाहते थे, जिससे उनकी मांग कमजोर पड़ जाए। लिहाजा, उन्होंने ख़ुद को पेरियार से अलग कर लिया।
इस बारे में पेरियार और जिन्ना के बीच पत्राचार भी हुआ। पेरियार ने 9 अगस्त, 1944 को जिन्ना को एक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने जिन्ना को याद दिलाया कि उन दोनों के बीच द्रविड़स्तान को लेकर बात हुई थी और जिन्ना ने उनसे समर्थन का वादा किया था। लेकिन, जिन्ना ने जवाबी खत में पेरियार का साथ देने से साफ़ मना कर दिया। जिन्ना ने लिखा, 'मुझे मद्रास के लोगों से पूरी सहानुभूति है, जिसमें से 90 फ़ीसदी गैर-ब्राह्मण हैं। लेकिन, अगर वे अपना अलग मुल्क बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए उन्हें ख़ुद ही आगे आना होगा। मैं इस मामले में आपकी वकालत नहीं कर सकता।'
साभार
रजनीकांत शुक्ला ✍️

admin