प्रेरक कहानी : उम्मीदों के पंख

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय
प्रकृति हमारे जीवन में उजाला बिखेरती है
आशंकाए अंधेरे की ओर ले जाती, मानव जीवन में मिलती है निराशाए
एक बार ज्योतिषियों ने ऐलान किया कि आगामी पांच साल बारिश न होगी।एक किसान ने जब ये ख़बर सुनी तो निराश होकर घर वापस आया और हल-फावड़ा कोने में रखकर बैठ गया,इस तरह से उसके पांच दिन गुज़रे और उसे एक पल भी चैन न आया,क्योंकि वो किसान था,मेहनत-मजदूरी करना उसकी फितरत में था,यूं बैठे रहना उसे मंजूर न था,आखिर पांच दिन बाद हल-फावड़ा लेकर खेत पर पहुंच ही गया और खेत जोतने लगा,थोड़ी देर में किसान ने अपने सर पर बादल महसूस किया तो देखा कि एक बादल का टुकड़ा है,बादल ने कहा कि तुम्हें मालूम नहीं है कि पांच साल बारिश न होगी?किसान ने कहा,मालूम है मगर पांच दिन में मेरी हालत खराब हो गई, पांच साल में तो खेती करना ही भूल जाऊंगा बल्कि मर ही जाऊंगा।बादल चौंका और कहा,हाँ यार!बात तो तुम्हारी पते की है,जब तुम पांच साल में खेती करना भूल सकते हो तो तब तो मैं भी पांच साल में बरसना भूल सकता हूँ!!
फिर क्या था,बादल ने बरसात की और किसान ने खेती और रुकी-रुकी सी ज़िंदगी झट से चल पड़ी।उम्मीदों के पँख लगे और अरमानों ने परवाज़ की और प्रकृति ने हर तरफ़ हरियाली की चादर तान दी।
इस लेख में एक सबक़ है कि हमें अपने हुनर का हमेशा इस्तेमाल करते रहना चाहिये,एक न एक दिन वो फायदा देगी ही।एक व्यक्ति अपने बेटे को अपने काम के प्रति मग्न रहने को उभारता है और कहता है कि"करते रहो इसी से होगा"।निस्संदेह करने से ही सब होगा,जो आज मुश्किल लग रहा है,कल आसानियों में तब्दील होगा।समाज के कुछ लोगों का काम ही है आपको आशंकाओं में घेरना मगर प्रकृति का काम है आपको मायूसी के अंधेरे से निकालकर और उम्मीद की धूप में बैठा कर आपकी ज़िंदगी में उजाला बिखेर देना...
लेखक:
नजमुस्साकिब अब्बासी नदवी
सामाजिक कार्यकर्ता एवं नया सवेरा फाउंडेशन के संस्थापक, समावेशी फेलोशिप के मेंटर हैं।