रतनपुरा (मऊ): किसानों को मशरूम की खेती की दी गई वैज्ञानिक जानकारी

रिपोर्ट- फतेहबहादुर गुप्त वरिष्ठ संवाददाता ✍️
रतनपुरा (मऊ)।आत्मा योजना के अंतर्गत स्थानीय विकास खंड के सभागार में रवि गोष्टीका आयोजन हुआ। इसमें पिलखी कृषि विज्ञान केंद्र से डॉ अजित वत्स मशरूम स्पेसलिस्ट , पूर्व पादप सुरक्षा डॉ राम कृष्णराम, प्रभारी सहायक विकास अधिकारी कृषि सुशील गिरी, प्राविधिक सहायक अखिलेश विश्कर्मा ,प्रशांत कुमार प्रजापति, बृजमोहन सिंह , राघवेंद्र , राजन कुमार , नितेन्द्र सिंह , विनोद कुमार वर्मा , विपिन कुमार यादव एवं किसान अशोक राजभर , संतोष सिंह, ठाकुर नरेंद्र सिंह लोहराई इत्यादि प्रमुख थे। इसमें कीटो से बचाव हेतु विस्तृत जानकारी दी गई। तथा किसानों से आग्रह किया गया कि वह पराली न जलावे। गेहूं की सीड ड्रिल से बुआई और हैप्पी सीडर से बुआई के साथ ही कोविड -19 इत्यादि के बारे में किसानों को जानकारी दी गयी | मशरूम स्पेशलिस्ट डॉ अजीत वत्स ने ऑयस्टर मशरुम मशरूम उगाने की पूरी जानकारी देते हुए किसानों को प्रोत्साहित किया कि यह उनके आजीविका में मील का पत्थर साबित होगा। डॉ अजीत वत्स ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि ऑयस्टर मशरूम की खेती बड़ी आसान और सस्ती है। इसमें दूसरे मशरूम की तुलना में औषधीय गुण भी अधिक होते हैं। दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई एवं चेन्नई जैसे महानगरों में इसकी बड़ी माँग है। इसीलिये विगत तीन वर्षों में इसके उत्पादन में 10 गुना वृद्धि हुई है। तमिलनाडु और उड़ीसा में तो यह गाँव-गाँव में बिकता है। कर्नाटक राज्य में भी इसकी खपत काफी है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में भी ओईस्टर मशरूम की कृषि लोकप्रिय हो रही है। उन्होंने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश मशरूम उत्पादन का हब बन रहा है। कई प्रदेशों से प्रशिक्षण लेने के लिए यहां किसान आते रहते हैं। ऑयस्टर "स्पॉन (बीज) के जरिए मशरूम की खेती की जाती है, इसके लिए सात दिन पहले ही मशरूम के स्पॉन (बीज) लें, ये नहीं की एक महीने मशरूम का स्पान लेकर रख लें, इससे बीज खराब होने लगते हैं। इसके उत्पादन के लिए भूसा, पॉलीबैग, कार्बेंडाजिम, फॉर्मेलिन और स्पॉन (बीज) की जरूरत होती है। दस किलो भूसे के लिए एक किलो स्पॉन की जरूरत होती है, इसके लिए पॉलीबैग, कार्बेंडाजिम, फॉर्मेलिन, की जरूरत होती है।"दस किलो भूसे को 100 लीटर पानी में भिगोया जाता है, इसके लिए 150 मिली. फार्मलिन, सात ग्राम कॉर्बेंडाजिन को पानी में घोलकर इसमें दस किलो भूसा डुबोकर उसका शोधन किया जाता है। कार्यक्रम का प्रभावी संचालन उद्घोषक राजेश श्रीवास्तव ने किया।