औरत के बिना कोई घर नहीं होता- अजीत पाण्डेय

औरत के बिना कोई घर नहीं होता- अजीत पाण्डेय

रिपोर्ट - प्रेम शंकर पाण्डेय

अक्सर लोग कहते हैं औरतों का घर नहीं होता, हमारा मानना है कि औरतों के बिना घर नहीं होता

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आज यानि 8 मार्च शनिवार को मनाया जा रहा है।आज के दिन विकसित और विकासशील देशों में महिला सशक्तीकरण की बातें जोरों पर होती हैं।

महिलाओं का सम्मान सिर्फ एक परंपरा या औपचारिकता नहीं, बल्कि समाज की उन्नति और विकास की सबसे अहम बुनियाद है। आज जब हम महिलाओं की ताकत और उपलब्धियों की बात करते हैं, तो 8 मार्च का दिन खुद-ब-खुद एक प्रतीक बन जाता है।

आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं,लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं था। एक समय था जब महिलाओं को न तो शिक्षा का अधिकार था, न ही वोट देने का और न ही उन्हें पुरुषों के बराबर माना जाता था। इस असमानता के खिलाफ 1908 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में महिलाओं ने आवाज उठाई।अपनी आवाज बुलंद करने के लिए करीब पन्द्रह हजार महिलाओं ने एक विशाल प्रदर्शन किया था। वे कम वेतन, बेहतर काम करने की परिस्थितियां और वोटिंग के अधिकार की मांग कर रही थीं।

इस आंदोलन ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा और 1910 में डेनमार्क के कोपेनहेगन शहर में एक अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में जर्मनी की समाजवादी नेता क्लारा जेटकिन ने यह प्रस्ताव रखा कि हर साल एक दिन महिलाओं के अधिकारों और समानता के लिए समर्पित किया जाना चाहिए। इस विचार को कई देशों ने अपनाया और 1911 में पहली बार ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया।

आज महिला शसक्तीकरण समानता का 193 देश अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं।

महिलाएं सूर्य हैं, पुरुष विभिन्न कक्षाओं में दोलते ग्रह।महिलाएं नाभिक हैं, पुरुष इलेक्ट्रॉन। जैसे, नाभिक से इलेक्ट्रान आबद्ध है, संबद्ध व प्रतिबद्ध है---वैसे ही महिला से पुरुष। एक निश्चित कक्षा में नाभिक की परिक्रमा ही नियति है---इलेक्ट्रॉन की भी, पुरुष की भी। उन कक्षाओं से बाहर उसका कोई अस्तित्व नहीं। जन्म से अपने पूरे जीवन जीने तक पुरुष महिलाओं के आस-पास ही उगते-खिलते-फलते हैं।यह गाड़ी के दो पहियों वाला संबंध नहीं है, क्योंकि पहिये समान होते हैं।महिलाएं उत्कृष्ट हैं...अधिकारी हैं, पुरुष 'भिक्षार्थी'। (विवाह के समय महिला को अधिकार दिए जाते हैं, और पुरुष को दान) आधी दुनिया निर्विवाद रूप से महिलाओं की है, आधी उनके आस-पास बसे पुरुषों की।

पुरुष पोथी पढ़कर पंडित हुआ...महिलाएं 'स्वभावेन पंडिता' हैं।जिस, अबाध को हम बांध नहीं सकते..उसके साथ अखिन्न मन से बहना ही ठीक है।

ऊपरी ओहदे पर बैठने वाली महिलाएं ये सुनिश्चित करें कि क़ाबिलियत रखने वाली योग्य महिलाओं को उन ओहदों तक पहुंच पाने का मौक़ा मिल सके।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं

 साभार

अजीत कुमार पाण्डेय ✍️