सार्वजनिक जीवन में नग्नता मार्डन होने की निशानी नहीं_ कुमार अशोक शांडिल्य

रिपोर्ट _ प्रेम शंकर पाण्डेय ✍️
बेबाक-बेवाच कलम की बात...✍️ सार्वजनिक जीवन में मर्याद से रहें,जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है। ठीक उसी प्रकार किसी भी लड़की को मनचाही अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनने का अधिकार नहीं है क्योंकि जीवन सार्वजनिक है। एकांत रोड में स्पीड चलाओ, एकांत जगह में अर्द्धनग्न रहो चाहे नग्न रहो। मगर सार्वजनिक जीवन में समाज के नियम मानने पड़ते हैं। भोजन जब स्वयं के पेट मे जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खायेगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी... लड़कियों का अर्धनग्न वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है, जितना लड़को का शराब पीकर गाड़ी चलाने का मुद्दा उठाना जरूरी है। दोनों में एक्सीडेंट होगा ही होगा। अपनी इच्छा केवल घर की चहारदीवारी में उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन मे कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा का सम्मान लड़का हो या लड़की उसे करनी ही होगी। घूंघट और बुर्का जितना गलत है, उससे भी भयानक गलती है अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनना, अधनङ्गा घूमना,बड़ी उम्र की लड़कियों का बच्चों की सी फ़टी निक्कर पहनकर छोटी टॉप पहनकर फैशन के नाम पर घूमना भारतीय संस्कृति का अंग तो कत्तई ही नहीं है... जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र है,ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढीला छोड़ना भी गलत है।सँस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है, गाड़ी के दोनों पहिये में सँस्कार की हवा चाहिए,एक भी पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब होगा। नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है,तो सबसे मॉडर्न जानवर है जिनके संस्कृति में कपड़े ही नही है। अतः जानवर से रेस न करें,सभ्यता व संस्कृति को स्वीकारें।कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिंन पास कर सकता है,सभ्य इंसान को यह अधिकार नहीं है।उसे सभ्यता से बन्द टॉयलेट उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री को सभ्य वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन मे करना ही होगा। अतः विनम्र अनुरोध है कि स्वतन्त्र रहें स्वच्छंद नहीं सार्वजनिक जीवन मे मर्यादा न लांघें,सभ्यता से रहें... साभार: *कुमार अशोक शांडिल्य*(पत्रकार) चंदौली_ वाराणसी